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विजय मंदिर विदिशा जो 400 सालों तक -आक्रांताओं से लड़ता रहा और जब उसे जीत न सके तो मुगल सम्राट औरंगजेब ने मंदिर को तोप से उड़ाया और बना दिया एक मस्जिद

विजय मंदिर विदिशा जो 400 साल तक आक्रांताओं से लड़ता रहा और जब उसे जीत ना सके तो मुगल सम्राट औरंगजेब ने अंत में उसे तोप से उड़ाया और बना दिया एक मस्जिद : Bija Mandal Vidisha 


बीजा मंडल प्रवेश द्वार 


        बीजा मंडल विदिशा जिले का एक मुख्य ऐतिहासिक स्थान है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इतिहासकारों का मानना है कि विदिशा जिले का नाम भेलसा बीजा मंडल के नाम पर ही हुआ है । विजय मंदिर का निर्माण परमार युग में लगभग 9 वीं से 10 वीं सदी के मध्य काले पत्थरों से किया गया था। शब्द बीजा मंडल की उत्पत्ति संभवतः इस विजय मंदिर के बाद ही हुई थी। इस मंदिर के स्तंभ युक्त मंडप के एक स्तंभ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इस मंदिर का तादम्या चर्चिका देवी से स्थापित किया जाता है। इस अभिलेख में परमार शासक नर वर्मन का भी उल्लेख है। उक्त देवी का एक अन्य नाम विजया भी था जिस कारण इस मंदिर का नाम विजय मंदिर पड़ गया। 

 बीजा मंडल 

कीर्ति मुख 


        इस मंदिर की दीवार से सन 1186 का उदयादित्य (उदय वर्मन ) का एक अभिलेख मिला है। यहां पर सन 1971 - 72 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत हुए उत्खनन में मंदिर के दक्षिणी भाग में से एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ था जो सूर्य उपासना से संबंधित होता है।यह अभिलेख देवनागरी लिपि के संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण हैं , हालांकि इसमें किसी तारीख का उल्लेख तो नहीं है, फिर भी भाषा के आधार पर यह लगभग 1100 ईसवी का माना जाता है , जब परमार युग चल रहा था और इस विजय मंदिर का निर्माण हो रहा था । यहीं से प्राप्त एक अन्य अभिलेख में भगवान भेल्ल स्वामिन का उल्लेख किया गया है जिसका तात्पर्य सूर्य भगवान से है। जिस कारण ही वर्तमान विदिशा को भेेलसा के नाम से भी जाना जाता है । यह भी संभव है कि तत्कालीन शासक सूर्य भगवान के उपासक हों, जिनके सम्मान में इस मंदिर का निर्माण किया गया हो एवं बीजा मंडल वास्तविक रूप से सूर्य मंदिर रहा होगा। 

 बीजा मंडल विदिशा 


        ऐतिहासिक नजरिए से विदिशा देश के प्रमुख क्षेत्र में शामिल है। यहां कई ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहर मौजूद है जिसमें कुछ तो ईसा पूर्व से पुरानी है। आज के ब्लॉग में हम इस प्राचीन मंदिर के विजय मंदिर से बीजा मंडल तक के सफर के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे । करीब 1000 साल से भी अधिक पुराना यह मंदिर हालांकि आज अपने मूल रूप में नहीं है, परंतु इसके अवशेष देख कर कोई भी यह अंदाजा आसानी से लगा सकता है किसी समय यह दुनिया का एक बड़ा आश्चर्य रहा होगा । हजारों सालों तक लगातार कई हमले सहने के बाद , मिटने के बाद यह फिर खड़ा हुआ और आज भी अपनी विजय गाथा गा रहा है। 

बीजा मंडल प्रवेश द्वार 


        इतिहासकारों के अनुसार बीजा मंडल को पहले विजय मंदिर के नाम से जाना जाता था। इसके इतिहास को जानने के लिए हमें विदिशा के इतिहास को जानना होगा। विदिशा या भेलसा की जड़े विदिशा की पहचान से जुड़ी है। प्राचीन यात्री एवं इतिहासकार अलबरूनी ने अपनी किताब में भी बीजा मंडल का जिक्र किया है । उसने कहा कि विजय मंदिर 100 गज ऊंचा था और सैकड़ों मील दूर से दिखता था । इन मंदिरों का निर्माण परमार शासकों ने 10वीं से 11वीं सदी के बीच किया था। साक्ष्यों के अनुसार यह मंदिर आधा मील लंबा , चौड़ा तथा 105 गज ऊंचा था। अपने विशाल स्वरूप प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा विदेशी आक्रांताओं की आंखों में चुभता रहा । कई बार इसे लूटा गया और तोड़ा गया। मंदिर की वास्तुकला एवं मूर्तियां यह साक्षात प्रमाण देती है कि 10 वीं सदी से पूर्व यहां कोई विशाल देवालय था जिस का पुनर्निर्माण परमार युग में किया गया।

बीजा मंडल विदिशा ऊपर मंजिल 

बीजा मंडल विदिशा 


         मुस्लिम हमलों की शुरुआत भी परमार काल से ही होती है। पहला आक्रमण 1233- 34 में इल्तुतमिश के समय किया गया और इल्तुतमिश ने भेलसा पर अधिकार कर लिया। फिर 1250 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया । फिर 1290 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति दुर्दांत हमलावर मलिक काफूर द्वारा यहां हमला कर लूटपाट की गई। सन् 1459 साथ में मांडू के शासक महमूद खिलजी ने हमला किया और लूटपाट की। फिर 1532 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने यहां हमला कर विनाश किया। इन सब हमलों को सहने के बाद यह विजय मंदिर फिर खड़ा हुआ और मुग़ल शासकों की आंखों में फिर से चुभने लगा। 

बीजा मंडल विदिशा 

बीजा मंडल अवशेष 


        अंत में सबसे खतरनाक हमला मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1682 में किया और तोपों से इस मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। शिखरों को पूरी तरह से तोड़ दिया। मंदिर के अष्टकोण संरचना को चतुष्कोण संरचना कर दिया। मंदिर के अवशेषों का प्रयोग कर एक मस्जिद का स्वरूप दे दिया। सन् 1760 में पेश हवाओं ने इस संरचना को नष्ट कर दिया। बीजा मंडल से पहले चर्चिका देवी मंदिर से भी इसकी पहचान थी : इतिहासकार बताते हैं परमार राजाओं द्वारा निर्मित यह विजय मंदिर चर्चिका देवी को समर्पित था एवं चर्चिका मंदिर के नाम से जाना जाता था। देवी चर्चिका का एक अन्य नाम विजया भी था। एक अभिलेख में परमार शासक नर वर्मन का नाम दर्ज है। पुरातत्त्व विभाग के अधीन आने पर इसका नाम बीजा मंडल हो गया। 

बीजा मंडल उत्तरी दीवाल 

बीजा मंडल पिछला हिस्सा 


मुगल सम्राट औरंगजेब के समय हुआ था सबसे भीषण हमला : 


        ऐसा कहा जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण विदिशा शहर ध्वस्त हो गया था। खुदाई में इस बीजा मंडल के अवशेष मिले थे। दूसरा पहलू यह भी है जो इतिहासकार बताते हैं की मुगल सम्राट औरंगजेब के समय तोपों से विजय मंदिर पर हमला किया गया और पूरा मंदिर ध्वस्त कर दिया गया एवं मंदिर के पत्थरों का उपयोग कर एक विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया । उसने इस मस्जिद का नाम आलमगिरी मस्जिद रख दिया और विदिशा का नाम आलमगिरी रखा। परंतु यह अधिक समय तक नहीं चल पाया और दोनों ही समय के साथ समाप्त हो गए। मस्जिद में विशाल मीनारों का निर्माण कराया गया कुछ समय तक यह स्थल इबादतगाह भी रहा। सन् 1991 की एक रात बारिश के मौसम में यहां तेज बारिश हुई। तब मंदिर के उत्तरी किनारे की मिट्टी धसक गई और कई प्राचीन मूर्तियां बाहर आ गई। बाद में जब यह स्थल पुरातत्व के अधीन आया और यहां खुदाई का कार्य हुआ तो हिंदू धर्म के एक विशाल मंदिर की नींव प्रकाश में आई और कई धार्मिक मूर्तियां मिली। बाद में पुरातत्व विभाग ने विवाद की स्थिति को देखते हुए इस स्थल को बंद कर दिया। 



बीजा मंडल परिसर में फैले अवशेष 


         सच कहूं तो अब यहां मंदिर जैसा कुछ भी नहीं दिखता है। चारों तरफ खंडर है और टूटे हुए मंदिर के अवशेष। यहां प्रवेश करते समय सबसे पहले आपको म्यूजियम दिखेगा जो पहली नजर में आप को बंद लगेगा परंतु उसका दरवाजा दूसरी तरफ से भी है। म्यूजियम को आप जरूर देखें। यहां मूर्तियों को अच्छे से जमा कर रखा गया है और पूरा विवरण भी साथ में प्रदर्शित किया गया है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा अच्छा गार्डन विकसित किया गया है एवं मंदिर के हजारों अवशेषों को इस गार्डन में सुरक्षित जमा कर रखा गया है। कहीं शिखर है, कहीं मंदिर की मूर्तियां हैं, कहीं चौखटे हैं , वहीं कुछ ऐसे भी पत्थर हैं जो आपको समझ ही नहीं आएंगे कि कहां के अवशेष हो सकते हैं । 


बीजा मंडल जाली में बंद हिस्सा 


बीजा मंडल का मुख्य अवशेष : 

बीजा मंडल विदिशा 


        मंदिर के मुख्य हिस्से के नाम पर अब यहां एक विशाल प्लेटफॉर्म है। जिस पर कभी विशालकाय मंदिर खड़ा होगा । संभवतः मंदिर के तीन प्रवेश द्वार रहे होंगे जैसा कि देखने से प्रतीत होता है। तीनों तरफ से विशाल सीढ़ियां बनाई गई है जो कि अभी भी सुरक्षित हैं। पहली नजर में ही आपको आभास हो जाएगा कि यहां जो भी मंदिर रहा होगा वह यकीनन अपने समय का एक विशालकाय मंदिर होगा और एक आश्चर्य से कम नहीं होगा। परंतु जब इस मंदिर को तोप से उड़ाया जा रहा होगा तो यकीनन मंदिर को तोड़ने वाले का दिल दुखा तो होगा ही। मंदिर के प्लेटफार्म के ऊपर जाने को सीढ़ियां बनी है । उस पर भी एक मंजिल है जिसे शटर और जाली लगाकर बंद कर दिया गया है उसके अंदर बहुत सारी मूर्तियां रखी हुई है। 

बीजा मंडल शिव उमा मूर्ति 

बीजा मंडल परिसर में रखी मूर्ति 

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बन रहे संसद भवन की डिजाइन इसी विजय मंदिर से प्रेरित है :


 


        भारत के नए संसद भवन का डिजाइन ऊपर से फोटो लेने पर इसी मंदिर से मिलता लगता है। यहां की हर मूर्ति , हर अवशेष उस बर्बरता की कहानी कहता है जिसे सदियों पहले दुर्दांत आक्रमणकारियों और उनकी सेना ने दिखाया था। कोई भी मूर्ति यहां आपको सुरक्षित और पूरी नहीं मिलेगी। म्यूजियम में भी कई मूर्तियां रखी हैं परंतु बेहद अफसोस की बात है कि वह सब खंडित अवस्था में है। एक आकर्षक अष्टभुजी गणेश की प्रतिमा म्यूजियम में रखी है परंतु वह भी खंडित है।

 बीजा मंडल की ऐतिहासिक बावड़ी : 

बीजा मंडल बाबड़ी 


        विजय मंडल स्थित यह बावड़ी वास्तव में अद्भुत एवं विशालकाय और लगभग सुरक्षित स्थिति में है। इस बावड़ी का पानी इससे जुड़े हुए एक कुएं से आता है जो उसके बराबर में ही हैं ।ऐसा बताते हैं कि इस कुएं का पानी कभी भी कम नहीं होता और कुछ लोगों ने ऐसा भी बताया कि इस बावड़ी में से कुछ गुप्त रास्ते निकलते हैं। कुए का मुंह गोल है एवं जाली बनाकर उसको अब बंद कर दिया गया है। बावड़ी के प्रथम उतार पर लगभग 8 वीं सदी के दो बहुत ही सुंदर नक्काशी दार स्तंभ है जो इस मंदिर के पूर्व के हैं। इस स्तंभों में कृष्ण लीला के विभिन्न दृश्य को दर्शाया गया है । इस स्थल पर इस बावड़ी का होना इस बात का संकेत है कि परमार काल से पहले यहां कोई एक देवालय अवश्य रहा होगा। 



बीजा मंडल तक पहुंचे कैसे : 

            विदिशा रेलवे स्टेशन के माध्यम से देश के हर प्रमुख शहर से जुड़ा हुआ है। नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल है जो कि लगभग 60 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो या अन्य साधन लेकर आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।

चित्र दीर्घ :














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