Pathari : The lost city of great temples of mediaeval India
( पठारी मध्यकालीन मंदिरों का एक गुमनाम शहर ) :
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kutkeshwar temple Pathari |
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kutkeshwar Temple |
पठारी विदिशा जिले का एक छोटा सा कस्बा है जो कि वर्तमान में कुरवाई तहसील के क्षेत्र अंतर्गत आता है। जो व्यक्ति विदिशा जिले के आसपास के क्षेत्र से ताल्लुक रखता है वह कहीं ना कहीं पठारी के नाम से अवश्य परिचित है।हालांकि पठारी की पहचान एक छोटे से कस्बे के रूप में है जहां पत्थरों की कई खदानें हैं और कुछ ऐतिहासिक मंदिर जो 10 वीं 11 वीं सदी के आसपास के हैं। लेकिन इतना कहने भर से पठारी की पहचान पूरी नहीं हो जाती है।
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Ruins of temples in Pathari |
पठारी वास्तव में एक मध्यकालीन मंदिरों की श्रंखला का पूरा शहर है जो कई मंदिरों को अपने भीतर छोटे से क्षेत्र में समाए हुए हैं। इसे पठारी का दुर्भाग्य या हम लोगों का दुर्भाग्य कहा जाए कि यह मंदिर आज अपनी पहचान के लिए तरस रहे हैं। कुछ मंदिर तो विख्यात हैं जैसे कि gadarmal temple , Jain temples । पर कई अन्य मंदिर जो कि लगभग 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य के हैं और अपने समय में अत्यंत प्रभावशाली और खूबसूरत मंदिरों की श्रेणी में आते होंगे , परंतु वर्तमान में अधिकांश मंदिर नष्ट होने की कगार पर हैं और धीरे धीरे पहचान खोते जा रहे हैं। हालांकि पुरातत्व विभाग ने इनको संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए बाउंड्री वॉल आदि तो बना दी है पर अन्य जो उस को संरक्षित करने की आवश्यकता है वह उस स्तर पर नहीं हो पा रही है। आज पठारी कस्बा बहुत पिछड़ा हुआ और एक बहुत छोटे से कस्बे के रूप में पहचान रखता है जोकि अपने पत्थर के लिए विख्यात है। परंतु आज से लगभग 8000 साल पहले यह क्षेत्र धन्य धन्य से परिपूर्ण और प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र रहा होगा। क्योंकि इतने छोटे क्षेत्र में इतने व्यापक पैमाने पर और इतने बड़े मंदिरों का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि यह क्षेत्र का प्रभाव दूर दूर तक फैला रहा होगा।
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kutkeshwar temple Pathari |
एक सीरीज में इसको कवर कर पाना लगभग असंभव है इसीलिए आज की सीरीज में हम कुछ मंदिरों का उल्लेख और उनके बारे में चर्चा करेंगे और एक अन्य सीरीज में पठारी कस्बे को भी कवर करने की कोशिश करूंगा। प्रारंभ में मैंने अंदाज लगाया था कि लगभग 4 से 5 घंटे में पठारी के मंदिरों को कवर कर लूंगा परंतु यह मेरा अंदाज ही रहा और इतने छोटे समय में कवर करना लगभग असंभव है। मैंने अपने स्थानीय परिचित को अपने साथ लिया और उसको कहा कि पठारी में जितने भी मंदिर ऐतिहासिक हैं मुझको वहां क्रमबद्ध तरीके से ले चलो और जैसा कि उसने मुझे बताया उसी सिरे से मैं इस श्रंखला को प्रस्तुत कर रहा हूं :
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kutkeshwar Temple Pathari |
1. कुटकेश्वर मंदिर 10 वीं सदी
( Kutkeshwar Temple 10th century ) :
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kutkeshwar temple Pathari |
कुटकेश्वर मंदिर पठारी से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा की ओर स्थित है। बाहर से एक साधारण 10 वीं सदी का मंदिर प्रतीत होता है जिसमें ज्यादा नक्काशी नहीं है। मंदिर में तीन तरफ खिड़कियां बनाई गई है जिसमें 3 देवताओं के मूर्तियां स्थापित हैं जो लगभग खंडित अवस्था में हैं। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। मंदिर शिखर दार है परंतु ऐसा बताया गया कि बिजली गिरने के कारण मंदिर का शिखर नीचे गिर गया है । टूटे शिखर के ऊपर नंदी की एक छोटी सी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार बहुत ही नक्काशी दार है।
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Kutkeshwar Temple Pathari |
कुटकेश्वर मंदिर के अंदर एक शिवलिंग स्थित है , जिसमें लगभग 1100 छोटे शिवलिंग को को उकेरा गया है। गर्भ गृह में मंदिर की बनावट साधारण है। मंदिर का मुख्य आकर्षण है दीवाल में स्थित त्रिमूर्ति शिव। बहुत ही आकर्षक और भव्य तरीके से मूर्तिकार ने भगवन के रूप को साकार किया है। और इस तरह की मूर्तियां बहुत ही दुर्लभ है। भोलेनाथ की जटाओं को आकर्षक तरीके से उकेरा गया है और जटाओं में एक त्रिशूल को दर्शाया गया है। मंदिर के बारे में पुरातत्व विभाग द्वारा कोई भी जानकारी नहीं दर्शाई गई है अतः सही सही अधिक जानकारी कह पाना मुश्किल है। त्रिमूर्ति शिवजी की 6 भुजाएं हैं जिसमें एक भुजा खंडित है और बगल में ही रखी हुई है।एक मुख में शिव को विषपान करते हुए दिखाया गया है। दूसरा मुखिया सौम्य एवं शांत अवस्था में दर्शाया गया है।
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कुटकेश्वर शिव त्रिमूर्ति |
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कुटकेश्वर शिव पठारी |
तीसरा मुख कुछ-कुछ महिला जैसा प्रतीत हो रहा है जो शायद देवी पार्वती हो सकती हैं। यह भोलेनाथ का अर्धनारीश्वर रूप में भी हो सकता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर गंगा यमुना अपने अपने वाहन के साथ स्थित है। गंधर्व और अन्य मूर्तियों को आकर्षक तरीके से उकेरा गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर नृत्य करते हुए गणेश को दर्शाया गया है और साथ में सप्तमातृकाओं को भी दर्शाया गया है। गुप्तकालीन मंदिरों में 7 देवियों की मूर्तियां अधिकांश पाई गई है। पर बाद में यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी। मंदिर के एक दीवार की खिड़की में भगवान गणेश की काफी आकर्षक नृत्य करते हुए मूर्ति बनाई गई है परंतु यह मूर्तियां खंडित अवस्था में है।
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कुटकेश्वर मंदिर |
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kutkeshwar temple pathari |
सतगढ़ी मंदिर या सतमणि मंदिर ( Satgarhi temple ) :
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
कूटकेश्वर मंदिर के लगभग 3 किलोमीटर आगे जाने पर 7 मंदिरों का एक परिसर प्राप्त दिखता है जिसे सतगड़ी या सतमणि मंदिर कहा जाता है। पहाड़ों की तलहटी में 7 मंदिरों का एक समूह बना है जिसमें लगभग 3 या 4 मंदिर ही बचे हैं बाकी अन्य सब मंदिर धराशाई हो चुके हैं। क्योंकि यहां सात मंदिर रहे होंगे इसीलिए इसे सतगड़ी मंदिर कहा जाता है। देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित रहे होंगे और सभी मंदिर संभवतः 10 वीं शताब्दी के आस पास के ही हैं।
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सतमढ़ी मंदिर पठारी |
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सतमढ़ी मंदिर पठारी |
मंदिर क्रमांक 1 में एक मूर्ति ध्यान की अवस्था में खंडित रखी हुई है जिसका सिर नहीं है एवं चार हाथ है। मंदिर भी लगभग खंडित अवस्था में है प्रवेश द्वार पर नीचे की ओर कुछ नकाशी दार पत्थर लगे हुए हैं जिसमें हाथी और शेर का चित्रांकन किया हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह भगवान विष्णु को समर्पित रहा होगा। मंदिर का आकार बहुत छोटा है और सपाट छत है जैसे कि गुप्त काल में मंदिरों में हुआ करती थी। मंदिर क्रमांक 2 और 3 तो पूरा टीला है और सिर्फ चबूतरा ही शेष बचा हुआ है।
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Satmarhi Temple Pathari |
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Satmarhi Temple Pathari |
बाकी किसी अन्य मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है सिर्फ सपाट छत और कुछ खंडहर अवशेष ही रखे हुए हैं। मंदिर क्रमांक 6 में प्रवेश द्वार के ऊपर गरुड़ आसीन भगवान विष्णु को स्पष्ट देखा जा सकता है एवं मंदिर के अंदर लगभग वही खंडित मूर्ति ध्यान की अवस्था में जिसके चार हाथ है परंतु सर नहीं है रखी हुई है जिससे स्पष्ट है कि यह मंदिर भी विष्णु मंदिर ही रहा होगा। प्रवेश द्वार बहुत ही नक्काशी दार और सुंदर तरीके से बनाया हुआ है जिसमें गंगा यमुना अपने द्वारपालों और वाहन के साथ दर्शाई गई है। अन्य मंदिरों में कोई मूर्ति सुरक्षित नहीं रखी है सिर्फ सपाट छत दार मंदिर है ना कोई ज्यादा नक्काशी है और ना ही कोई दरवाजा है । टूटे-फूटे अवशेष और प्रवेश द्वार ही शेष बचे हैं। यकीनन जब यह सातों मंदिर स्थित रहे होंगे तभी तो भगवान विष्णु को समर्पित गुंजायमान वातावरण निर्मित होता होगा वह समय भी अद्भुत रहा होगा। पठारी के अधिकांश मंदिर समूह भगवान विष्णु को समर्पित है जिससे स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र शैव धर्म के अधीन रहा होगा और 12वीं 13वीं शताब्दी के बाद यहां मंदिरों का निर्माण लगभग बंद हो गया।
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Satmarhi Temple Pathari |
अगले ब्लॉग में हम दो अन्य मंदिरों का जिक्र करेंगे जो कि यहां के सबसे विश्व विख्यात मंदिरों में है gadarmal temple और जैन मंदिर समूह।
चित्र दीर्घा :
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कुटकेश्वर शिवा पठारी |
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kutkeshwar temple Nandi |
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कुटकेश्वर प्रवेश द्वार |
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कुटकेश्वर प्रवेश द्वार पठारी |
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Kutkeshwar Temple dancing Ganesha |
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Satgarhi Temple Pathari |
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Satgarhi Temple Pathari |
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
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सतगढ़ी मंदिर पथरी मूर्ति |
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
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सतगढ़ी मंदिर पठारी |
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pathari temple |
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Pathari Satgarhi Temple |
पठारी तक पहुंचे कैसे :
पठारी के नजदीकी रेलवे स्टेशन गंजबासोदा है जो लगभग 30 km की दूरी पर है। अन्य नजदीकी रेलवे स्टेशन मंडी बामोरा है जोलगभग 25 km की दूरी पर है। पठारी सड़क मार्ग से जुड़ा है एवं बस सेवा भी सभी जगह से उपलब्ध है।
4 Comments
विदिशा जिले की इतिहास के पन्नों में दबी गुमनाम प्राचीन ऐतिहासिक पुरातत्व विरासत को जनमानस के सामने लाने और परिचय करवाने का अति उत्तम प्रयास, साधुबाद
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज
Deleteबहुत ही सुंदर विवरण सर जी
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