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Eran ( bhanugupta/Gopraja pillar inscription ) : The first epigraphic evidence of Sati in India

    

Eran ( bhanugupta/Gopraja pillar inscription ) : 

एरन पहलाजपुर ( भानु गुप्त/गोपराज स्तंभ लेख ) : 

eran inscription

पिछले ब्लॉग में हमने एरण का एक विस्तृत हिस्सा कवर किया था। कृपया इस ब्लॉग को पढ़ने से पहले मेरा पिछला ब्लॉग एरण प्रारंभिक भारत का गुमनाम शहर अवश्य पढ़े।  

  इस ब्लॉग में हम एरण का वह महत्वपूर्ण हिस्सा कवर करेंगे जिसके कारण एरण Eran  हमारे इतिहास का अमर हिस्सा बन गया है और लगभग हर महत्वपूर्ण परीक्षा में इससे संबंधित सवाल पूछा जाता है। सवाल यह है कि सती प्रथा का पहला एपिग्राफिक प्रमाण किस शिलालेख में मिलता है।  यह अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा गुप्त शासक भानु गुप्त से संबंधित है। इस अभिलेख की लिपि ब्राह्मी तथा भाषा संस्कृत है। इस अभिलेख की खोज कनिंघम द्वारा सन 1874-75 के आसपास की गई थी तथा यह सर्वप्रथम आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट्स ऑफ इंडिया के दसवें संस्करण सन 1880 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था। कनिंघम की खोज के उपरांत डॉक्टर फ्लीट ने इस अभिलेख का विस्तृत विवरण कॉरपस इनस्क्रिप्शनम इंडिकराम खंड 3 सन 1888 में प्रकाशित किया। यह अभिलेख एक छोटे सेंड स्टोन के स्तंभ पर उत्कीर्ण है। कनिंघम और फ्लीट का भारतीय इतिहास को जानने और एक सूत्र में पिरोने में अमर योगदान है।  

eran bhanugupta inscription


ऐसा प्रतीत होता है बाद में स्थानीय लोगों ने इस स्तंभ को शिवलिंग के रूप में परिवर्तित कर इसकी पूजा शुरु कर दी। जिसका विवरण कॉरपस इनस्क्रिप्शन इंडीकारम  प्रारंभ खंड 3 के शिलालेख वासुदेव विष्णु मिरासी व गुप्तकालीन मूर्तिकला का अध्ययन आदि में प्राप्त होता है। वर्तमान में इस स्तंभ को शिवलिंग के रूप में स्थापित कर दिया गया है। 

eran inscription of bhanugupta

        इस अभिलेख की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पर जो लिखा हुआ है उससे ज्ञात होता है कि यह अभिलेख प्राचीनतम सती प्रथा का साक्ष्य उपलब्ध कराता है। इस अभिलेख में भानु गुप्त नामक गुप्त राजा का उल्लेख गुप्त संवत 191 (सन 510 ईसवी) के साथ मिलता है। इस  अभिलेख में भानु गुप्त के मित्र सेनापति गोपराज का विवरण है जो कि एक भयंकर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं तथा उनकी पत्नी उनकी चिता की लपटों में प्रवेश कर सती हो जाती हैं। भारत में सती प्रथा का यह पहला साक्ष्य है जिसमे स्पष्ट विवरण दर्ज है।  इसके बाद के काल में सती प्रथा के कई साक्ष्य मिलते है एवं सती के उदाहरणों को सती स्तम्भों के रूप में या सती स्मारकों के रूप में बनाया जाने लगा।  इस क्षेत्र में आज भी कई सती स्मारक देखने को मिलते है।  बाद के समय में यह कुप्रथा देश के कई हिस्सों में विस्तृत रूप से फैल गयी जिसके साक्ष्य आज भी देखने को मिलते है। 

Sati, Sati also spelled as Suttee, is a practice among Hindu communities where a recently widowed woman, either voluntarily or by force, immolates herself on her deceased husband's pyre. The woman who immolates herself is, hence, called a Sati which is also interpreted as a 'chaste woman' or a 'good and devoted wife


eran bhanugupta pillar inscription

Bhanugupta is known from a stone pillar inscription in EranMalwa. The inscription was translated by John Faithfull Fleet in 1888, and then a second time in 1981, leading to different interpretations.

Initial translation (J.F Fleet 1888)

According to the initial translation of the Eran inscription (by John Faithful Fleet in 1888), Bhanugupta participated to a non-specific battle in 510 CE (Line 5 )


  • Line 1) Ôm! In a century of years, increased by ninety-one; on the seventh lunar day of the dark fortnight of (the month) Srâvana; (or in figures) the year 100 (and) 90 (and) 1; (the month) Srâvana; the dark fortnight; the day 7: —
  • (Line 2)—(There was) a king, renowned under the name of . . . . râja, sprung from the . . laksha (?) lineage; and his son (was) that very valorous king (who was known) by the name (of) Mâdhava.
  • (Line 3)— His son was the illustrious Gôparâja, renowned for manliness; the daughter's son of the Sarabha king; who is (even) now (?) the ornament of (his) lineage.
  • (Line 5) — (There is) the glorious Bhanugupta, the bravest man on the earth, a mighty king, equal to Pârtha, exceedingly heroic; and, along with him, Gôparâja followed . . . . . . . . . . (his) friends (and came) here. [And] having fought a very famous battle, he, [who was but little short of being equal to] the celestial [king (Indra)], (died and) went to heaven; and (his) devoted, attached, beloved, and beauteous wife, in close companionship, accompanied (him) onto the funeral pyre.
    — Eran inscription of Bhanugupta, 510 CE.


New translation (1981)


A new revised translation was published in 1981.[Verses 3-4 are markedly differently translated, in that ruler Bhanugupta and his chieftain or noble Goparaja are said to have participated in a battle against the "Maittras" in 510 CE, thought to be the Maitrakas (the reading being without full certainty, but "as good as certain" according to the authors).[6] This would eliminate the suggestion that Bhanugupta alluded to a battle with Toramana in his inscription.

  • (Lines 1-2) Ōm ! When a century of years, increased by ninety-one, (had elapsed) on the seventh lunar day of the dark fortnight of (the month) Śrāvaṇa, (or in figures) the year 100 (and) 90 (and) 1 (the month) Śrāvaṇa the dark fortnight; the (lunar) day 7;-
  • (Verse 1) (there was) a ruler, renowned as . . . . rāja sprung from the Śulakkha lineage; and his son (was) valorous by the name (of) Mādhava.
  • (Verse 2) His son was the illustrious Goparaja, renowned for manliness; the daughter’s son of the Sarabha king;1 who became the ornament of (his) family.
  • (Verses 3-4) (There is) the glorious Bhanugupta, a distinguished hero on earth, a mighty ruler, brave being equal to Pârtha. And along with him Goparaja, following (him) without fear, having overtaken the Maittras and having fought a very big and famous battle, went to heaven, becoming equal to Indra, the best of the gods; and (his) devoted, attached, beloved, and beauteous wife, clinging (to him), entered into the mass of fire (funeral pyre).
— Eran inscription of Bhanugupta, 510 CE


      

Dainik Bhaskar dated 06-05-22


        यह खोज अपने आप में एक बहुत बड़ी खोज है जो बुंदेलखंड क्षेत्र खासकर एरन क्षेत्र को अन्य सभ्यताओं के समकालीन खड़ा कर सकती है। Eran की एक अन्य प्रमुख खोज यह है कि यहां गुप्त काल में निर्मित कृष्ण लीलाओं के आकर्षक पत्थर पर बने हुए पैनल मिलते हैं जिसमें कृष्ण लीलाओं को दिखाया गया है। चौथी - पांचवी सदी या गुप्तकाल में देश के किसी अन्य हिस्से में कृष्ण लीलाओं की ऐसी विस्तृत श्रृंखला नहीं मिलती है। यकीनन यह क्षेत्र एक बहुत बड़ी  नगरीय सभ्यता के रहस्य को अपने सीने में दबाए हुए हैं और एक बहुत विस्तृत शोध कार्य कि यहां आवश्यकता है। यकीनन यह क्षेत्र ईसा पूर्व से पहले एक विकसित नगरीय सभ्यता रही होगी इसीलिए समुद्रगुप्त ने इस क्षेत्र को अपनी छावनी और टकसाल के रूप में प्रयोग किया था। पर समय की मार यह भी नहीं  सह पाया और धीरे धीरे अपना महत्व खोता चला गया और मिटटी की परतों में समाता चला गया पर अपने निशान छोड़ गया जो एरण के महत्व को आज भी हमारे सामने दिखा रहा है।  


Eran

Eran
Eran

Eran Varah 

Eran

Eran 

Eran Krishan Lila

Eran Krishan lila

Eran krishan lila

Eran Sheshhayi vishnu

eran 

eran vishnu temple

एरण की सुरंग जो अब बंद है 

एरण में बलराम की मूर्ति 

एरण 

एरण की शाल भंजिका 

एरण के ग्राम में  गुप्तकालीन मूर्तियां 

एरण ग्राम में स्तिथ प्राचीन शिवलिंग 

eran ancient lord Ganesh 




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8 Comments

  1. Turely meaning ful and image are too nice

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  2. Such a informative post.👌

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  3. अच्छा प्रयास अधिकांश मूर्तियाँ बढ़िया हालात में, गणेश प्रतिमा बेस्ट है, शिलालेख का अनुवाद भी पुरातत्व विभाग को जल्द करना चाहिए

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  4. इतिहास से संबंधित अत्यंत रहस्यमयी एवम महत्वपूर्ण जानकारी जो एक संपूर्ण विकसित सभ्यता का बोध कराती है। 🙏🏻🙏🏻

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. शानदार सर जी🙏🙏

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  7. मध्यप्रदेश में आपने जो दिखाया उसके हम आभारी हैं। अदभुद साक्ष्य आपकी दृष्टि से जो हमारी संस्कृति का प्रमाण है।🙏

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