Eran The lost city of India: एरण प्रारंभिक भारत का गुमनाम शहर
एरण मध्य प्रदेश के सागर जिले में बीना एवं बेतवा नदी के संगम पर विंध्याचल पर्वत मालाओं के नजदीक एक पठार पर स्थित ऐतिहासिक क्षेत्र है जो गुप्तकालीन महान मंदिरों की श्रृंखला के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में यह स्थल एक गुमनाम स्थल है जिसका रास्ता भी ज्यादातर लोगों को नहीं पता है, परंतु एक समय ऐसा भी था जब प्राचीन भारत का हर प्रमुख रास्ता यहीं से होकर गुजरता था। इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह एक खास स्थान है । Eran was likely one of the ancient mints for Indian kingdoms, along with Vidisha, Ujjain, and Tripuri. A large number of antique coins, of different styles, shapes and inscriptions spanning the last few centuries of the 1st millennium BCE through the 7th-century have been discovered here.
|
Eran site |
एरण का नाम इस क्षेत्र में उगने वाली घास एराका के नाम पर रखा गया है। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि यहां के जो प्राचीन सिक्के पाए गए हैं उन पर नाग का चित्र है अतः इस स्थान का नामकरण एराका अर्थात नाग से हुआ है। इस स्थल पर चार सांस्कृतिक स्तर मिले हैं। प्रथम ताम्र युगीन, द्वितीय लौहयुग का तथा अन्य दो बाद के हैं। अभिलेखों से पता चलता है कि 1700 साल पहले गुप्त शासनकाल में यह नगर उस समय का एक मुख्य प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र था। प्राचीन भारत की मुख्य टकसालों में एक प्रमुख टकसाल थी एरण में। इसमें कई शासनकालों में सिक्कों को ढाला गया। एरण में पुरातात्विक उत्खननों में सिक्के बनाने के सांचों का मिलना इस बात की तस्दीक करता है। पुरातत्ववेत्ताओं की जांच पड़ताल से पता चला कि एरण की टकसाल में बने सिक्कों की कारीगरी और गुणवत्ता के कारण उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुदाई में मिले सिक्कों की बनावट देख अंग्रेज़ खोजकर्ता भी चकित रह गए थे। एरण में पुरातात्विक साक्ष्य ढूंढने वाले ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता एलेग्जेंडर कनिंघम ने अपने दस्तावेजों में लिखा कि उन्हें पूरे भारत में जगह-जगह खुदाई में जितने भी सिक्के मिले, उनमें एरण के सिक्के सबसे बेहतरीन कहे जा सकते हैं। सिक्कों की बनावट को देखकर लगता है कि एरण के कारीगर हर आकार के सिक्के बनाने में माहिर थे। कनिंघम के नेतृत्व में ही 1870 के दशक में एरण में खुदाई की गई थीा। यहां से पंच मार्क सिक्कों के भारी भंडार भी मिलते हैं। एरण ग्राम में आज भी कई प्रचीन शिव भगवान , गणेश भगवान की मूर्तिया स्तिथ हैं जिनकी पूजा की है।
|
एरण ग्राम में स्तिथ प्राचीन शिवलिंग |
|
एरण ग्राम में प्राचीन गणेश भगवान की मूर्ति |
एरण का इतिहास : History of Eran
एरण गुप्त काल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण नगर था। यहां से गुप्त काल के अनेक ऐतिहासिक मूर्तियां एवं अभिलेख प्राप्त हुए हैं। लेकिन यहां मिले सिक्कों से ज्ञात होता है कि ईसा से पूर्व काल में भी यह स्थान आबाद था। एरण भौगोलिक रूप से काफी महत्वपूर्ण स्थान पर है। एक तरफ मालवा है और दूसरी तरफ बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है। प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि एक समय यह बहुत ही समृद्ध नगर हुआ करता था । यहां की वास्तुकला और मूर्तिकला दुनियाभर में प्रसिद्ध थी। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के एक शिलालेख में एरन को एरकिन कहा गया है। इस महत्वपूर्ण अभिलेख को कनिंघम ने खोजा था जिसे अब कोलकाता संग्रहालय में रखा गया है।
The Eran Inscription of Samudragupta (336-380 CE) is presently stored in Kolkata Indian Museum. The inscription, in red sandstone, was found not far to the west of the ruined temple of the boar. सबसे पहले जनरल कनिंघम ने ही इस स्थान को एरीकिन नगर के रूप के पहचान की थी। यहां से प्राप्त अभिलेख से समुद्रगुप्त के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन लेखों में इस स्थान को स्व भोग नगर भी कहा गया है। एक अन्य अभिलेख गुप्त सम्राट बुध गुप्त का भी प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में यह कहा गया है कि बुध गुप्त के साम्राज्य में यमुना और नर्मदा के बीच का प्रदेश शामिल है। इसमें यह लिखा है कि उसकी अधीनता में मातृ विष्णु शासन कर रहा था यह लेख एक स्तंभ पर खुदा हुआ है जिसे ध्वजा स्तंभ कहते हैं।
|
eran pillar inscription |
यह स्तंभ आज भी उसी स्थान पर उसी तरह आज भी इतिहास की गवाही दे रहा है। यह स्तंभ लगभग 47 फुट ऊंचा और एक वर्गाकार आधार पर खड़ा है। इसके ऊपर एक ऊंची गरुड़ देव की मानव आकृति है जिसके पीछे चक्र का अंकन है।
|
एरण का प्राचीन शिवलिंग |
एरण का सती अभिलेख : The first epigraphical evidence of sati (immolation of widow) is found in an inscription at Eran, the Inscription of Bhanugupta (510 CE).
|
eran inscription sati pratha |
एरण से एक अन्य प्रसिद्ध अभिलेख भी मिला है जो लगभग 5 वी सदी का है। इसे भानु गुप्त का अभिलेख कहते हैं। यह अभिलेख महाराज भानु गुप्त के मंत्री गोप राज के विषय में है जो उस स्थान पर भानु गुप्त के साथ किसी युद्ध में आया था और वीरगति को प्राप्त हुआ था। गोप राज की पत्नी यहां सती हो गई थी । इस अभिलेख को एरन का सती अभिलेख भी कहा जाता है। यह इतिहास में पहली बार सती होने का प्रमाण मिलता है।
inscription of Bhanugupta 510 CE
|
eran sati inscription |
एरण से प्राप्त वराह मूर्ति मैं Huns शासक torman और उसके प्रथम वर्ष का उल्लेख किया गया है।इसमें उनके दिवंगत महाराज मातृ विष्णु के छोटे भाई धन्य विष्णु द्वारा वराह विष्णु के हेतु मंदिर निर्माण करवाने का उल्लेख किया गया है। एरण में गुप्तकालीन नरसिंह मंदिर, वराह मंदिर और विष्णु मंदिर स्थित है।
एरण का विष्णु मंदिर : Vishnu temple of Eran
|
Eran Vishnu Mandir |
एरण में गुप्तकालीन मंदिर परिसर में महा विष्णु प्रतिमा विष्णु मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिस्थापित है। इस महा विष्णु मंदिर का निर्माण समुद्रगुप्त ने करवाया था। यह मंदिर आयताकार है। 1875 में कनिंघम ने जब इस मंदिर को देखा तब इसकी छत गिर चुकी थी। इस विष्णु मंदिर में एक विकसित योजना के दर्शन होते हैं। मंदिर के गर्भ गृह के मध्य में भगवान विष्णु की विशाल चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा एक चौकी पर बनाई गई है जिसकी ऊंचाई लगभग 13 फुट 2 इंच है। मूर्ति का मुख आंशिक रूप से खंडित है।
|
Eran Vishnu Mandir |
प्रतिमा के दाहिनी ओर गदा बने होने का अवशेष है परंतु विष्णु भगवान का एक भी हाथ गदा से स्पर्श करते हुए नहीं दिखाया गया है । हाथों में पकड़े हुए अस्त्र टूट चुके हैं किंतु उनके हथे अभी भी विद्यमान हैं जिनसे ही अस्त्रों की पहचान हो सकी है। भगवान कंठ हार धारण किए हुए हैं एवं पवित्र वैजयंती माला उनके गले में सुशोभित है। देवता के मस्तक के पीछे विशाल प्रभामंडल है। प्रतिमा सादगी पूर्ण है एवं अलंकरण बहुत कम है। भगवान विष्णु जो धोती धारण किए हुए हैं वह बहुत ही प्रभावपूर्ण तरीके से दिखलाई गई है। वैजयंती माला धारण किए हुए यह मूर्ति श्री हरी के बल पराक्रम को प्रदर्शित करती है और भगवान विष्णु के भव्य रुप का दर्शन कराती है। यह प्रतिमा एक ही पाषाण खंड को काटकर बनाई गई है। इसकी चौकी मूल प्रतिमा के साथ निर्मित है। कनिंघम में इस प्रतिमा के समीप ईष्ट हर ग्रही लेख अंकित पाया और इस लिपि के आधार पर यह प्रतिमा चौथी शताब्दी की होना पाई गई ।
एरण का वराह मंदिर : The Colossal Varaha at Eran is the earliest known completely theriomorphic iconography for the Varaha avatar of Vishnu
|
Eran Varaha Temple |
वराह भगवान की यह विशाल मूर्ति वराह मंदिर में स्थापित है। यह मंदिर huns शासक तोरमाण के प्रथम राज्य वर्ष का है। महाविष्णु मंदिर के दक्षिण में यह मंदिर स्थित था। यहां के सभी प्राचीन मंदिरों में वराह मंदिर का बहुत विशेष महत्व है। यह लगभग 485- 500 ईसवी के मध्य निर्मित किया गया था। कनिंघम ने जिस समय यह मंदिर देखा 1875 ईसवी में , उस समय यह मंदिर ध्वस्त रूप में था परंतु प्रतिमा सुरक्षित थी। इस मंदिर का निर्माण तोरमाण की सत्ता स्वीकार करने वाले धन्य विष्णु द्वारा कराया गया था। प्रतिमा में तोरमाण के शासन काल का अभिलेख स्थित है।
Inscription of Toramana (circa 500 CE) The Eran boar inscription of Toramana is a stone inscription with 8 lines of Sanskrit, first three of which are in meter and rest in prose, written in a North Indian script.
|
eran Varaha inscription |
इस अभिलेख की खोज 1838 में टी एस बर्ट द्वारा की गई थी। यह एक विशाल प्रतिमा है एवं बहुत ही प्रभावशाली तरीके से इसे बनाया गया है। इस विशाल मूर्ति को एक ही पत्थर को काटकर निर्मित किया गया है। इस प्रतिमा की लंबाई 13 फुट 2 इंच, ऊंचाई 11 फुट 2 इंच तथा चौड़ाई लगभग 5 फीट है। इस विशालकाय मूर्ति के संपूर्ण शरीर में ऋषियों और देवताओं की आकृति को दर्शाया गया है। कमंडल लिए हुए अनेक वस्त्र धारी ऋषियों को अंकित किया गया है। इस कारण से इस प्रतिमा को यज्ञ वराह भी कहा गया है। महा वराह के गले में एक भारी हार है। साथ ही कन्या ,मत्स्य ,माला धारी स्त्री पुरुष एवं योगियों आदि को दर्शाया गया है। वराह से लटकी हुई नारी रूप प्रलय की पौराणिक कथा का प्रतीक है ।पृथ्वी देवी बाएं हाथ से वराह को पकड़े हुए हैं। वाराह के बायी तरफ एक मुद्रा शंकर भगवान के रूप में दिखलाई गए हैं ।
नरसिंह मंदिर :Narasimha temple
|
Eran Narsingh Temple |
दोनों मंदिर के बगल में एक अन्य तीसरा मंदिर भी स्थित है जिसे नरसिंह मंदिर कहा जाता है।यहां भगवान के नरसिंह अवतार की प्रतिमा स्थित है जो वर्तमान में टूटी हुई है और वही जमीन पर स्थित है।
कुछ विद्वान ऐसा भी बताते हैं कि मंदिर के समीप एक अन्य चौथा मंदिर भी था जिसे नर वराह मंदिर कहते हैं । कनिंघम को एक घर से विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति प्राप्त हुई थी जिसका आधा भाग मानव का तथा आधा पशु रूप में है केवल मुंह वराह का है। यह प्रतिमा सागर के पुरातत्व संग्रहालय में रखी गई है।
एरण का गरुड़ स्तंभ : The Buddhagupta pillar at Eran
|
Eran Pillar |
पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन है। महाभारत ,अग्नि पुराण तथा भागवत पुराण में गरुड़ पर आसीन चतुर्भुजी विष्णु को दर्शाने के निर्देश दिए हैं। एरण से गरुड़ आसीन चतुर्भुजी विष्णु की आकृति प्राप्त हुई है। महाभारत में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने गरुड़ से अपना वाहन बनने की इच्छा दर्शाई थी । जब गरुड़ ने उसे स्वीकार किया ,तब भगवान विष्णु ने उन्हें अपनी ध्वजा पर स्थापित कर उन्हें उचित स्थान दिया और वह गरुड़ध्वज के रूप में प्रतिष्ठित हुए । विष्णु तथा गरूड़ का उल्लेख सभी पुराणों में मिलता है। गुप्त काल में गरुड़ को मनुष्य रूप में मूर्ति के रूप में स्थापित किया जाने लगा। मानव रूप में निर्मित गरुड़ की मूर्तियों को स्तंभों पर निर्मित किया गया जिसने गरुड़ ध्वज स्तंभ कहा गया। इसे विष्णु मंदिर के सामने निर्मित किया जाता था। गरुड़ की मानव आकृतियों में उन्हें नागों को हाथों में या मुंह में पकड़े दर्शाया जाता है। एरण मैं गुप्तकालीन गरुड़ स्तंभ आज भी अपने मूल स्थान पर ही स्थित है। यह गरुड़ ध्वज स्तंभ कुल 49 फुट ऊंचा है।शीर्ष भाग के निचले भाग में घंटा कार अधोमुखी कमल की आकृति है। कमल के ऊपर ऊपरी भाग पर एक दूसरे से पीठ सटाए सिंह बैठे निर्मित किए गए हैं जिनके ऊपर गरुड़ की 1.70 मीटर ऊंची मानव प्रतिमा खड़ी हुई स्थित है।
|
Eran Pillar inscription |
शेषशायी विष्णु प्रतिमा :
|
एरण शेषशायी विष्णु |
एरण में शेषशयी विष्णु की मूर्तियों को तीन शिला पत्र पर उकेरा गया है यह प्रतिमाएं गुप्त काल में निर्मित हैं। एरन गुप्त काल में वैष्णव मत के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित हो गया था। गुप्तकालीन समाज में विष्णु के विभिन्न अवतारों की पूजा बहुत लोकप्रिय थी।
तीसरी से छठवी शताब्दी के मध्य यह सामरिक राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा परंतु गुप्त काल के पतन के बाद इस वैभवशाली नगर का भी पतन हो गया। एरण गांव प्राचीन ऐतिहासिक अवशेषों का विशाल भंडार है। इस गांव के नजदीक एक अन्य गांव पहलेजपुर स्थित है यहां पर एक अष्टकोण स्तंभ है जिसका शीर्षक गोलाकार है और जिस पर सती प्रथा के संबंध में भारत में मौजूद सबसे प्राचीन लेख है। गुप्त काल में निर्मित मंदिरों का प्रारंभिक रूप एरण में मिलता है। इसी तरह के प्रारंभिक मंदिर सांची, तिग्वां, भूमरा, नचना एवं देवगढ़ में मिले हैं। छोटे एवं सपाट गर्भ ग्रह, पूजा स्थल देव प्रतिमा युक्त मंदिर भारत के सबसे प्राचीन गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएं मानी गई है। यहां के मंदिरों की छत सपाट थी । इन सभी मंदिरों में साज-सज्जा बहुत कम है एवम् आयताकार है और गर्भ ग्रह में स्थापित देवताओं की मूर्ति के साथ थोड़ा छोटा द्वार मंडप है। एरण में दूसरी ईस्वी के शिवलिंग व नाग प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जिससे प्रतीत होता है कि यहां पर नाग शासकों का प्रभुत्व गुप्त शासकों के पहले से था। नाग शासकों के सिक्के भी इसकी पुष्टि करते हैं। छठवीं शताब्दी के बाद जब गुप्त शासकों का प्रभाव कम हो गया तब उसके बाद एरण का महत्व भी धीरे-धीरे खत्म हो गया और लगभग 18 वीं शताब्दी तक यह गुमनाम हो गया।
Gallery :
|
एरण |
|
एरण स्तंभ
|
एरण तक पहुंचे कैसे :
एरण सागर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है। खुरई तहसील से 25 km दूर है। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अलावा ट्रेन से भी पहुंचा जा सकता है सबसे नजदीक रेलवे जंक्शन बीना है जिससे इसकी दूरी लगभग 25 किलोमीटर है । एक अन्य नजदीकी रेलवे स्टेशन मंडी बामोरा भी है जो हालांकि छोटा रेलवे स्टेशन है और कम ही ट्रेन यहां रुकती है । मंडी बामोरा से यह लगभग 12 किलोमीटर दूर है।
|
एरण से प्राप्त मूर्ति |
|
eran |
हालाँकि समय की बंदिश और उपलब्ध स्रोतों के आधार पर यह जानकारी संकलित की है. अभी भी बहुत कुछ मुझे देखने और फोटो लेने जाना है. मेरा मानना प्रत्येक भारतीय को यहाँ जाना चाहिए और हमारे शानदार इतिहास को सजीव देखना चाहिए। अभी के लिए इतना ही, फिर कोशिश करूँगा कि एक ब्लॉग और एरण पर लिखूं।
5 Comments
सुवीर जी साधुवाद ।
ReplyDeleteसारगर्भित लेख
bahut bahut dhanywad
DeleteVery nice and historical pkce.
ReplyDeletethank you so much
Deleteइतिहास के छात्र होने के नाते मुझे आपका ब्लॉग बहुत जानकारीपूर्ण और रुचिकर लगा बहुत शानदार लेख है सिर
ReplyDelete