Muradpur Dham Hanuman Mandir :
मुरादपुर धाम जहां विश्राम अवस्था में विराजमान है श्री हनुमान जी :
मुरादपुर मंदिर |
रामकाज किन्हे बिनु, मोहि कहां विश्राम। यह पंक्तियां श्री तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में अंजनी पुत्र बजरंगबली के लिए लिखी थी। इन पंक्तियों का अर्थ यह है कि भगवान श्री राम का कार्य किए बिना मुझे विश्राम कहां मिलेगा। लेकिन प्रभु श्री राम का कार्य पूर्ण होने के बाद हनुमान जी ने भी विश्राम लिया होगा और शायद यही विश्राम की मुद्रा आज मुरादपुर धाम मंदिर में देखने को मिलती है। विदिशा जिले के गंजबासोदा से करीब 21 किलोमीटर दूर ग्राम मुरादपुर में श्री हनुमान जी की विश्राम अवस्था में एक प्राचीन एवम् विशाल प्रतिमा विराजमान है। यह एक छोटा सा गांव है जिसका नाम मुरादपुर भगवान शिव के 11 अवतार मारुति नंदन के कारण ही हुआ है
मुरादपुर धाम हनुमान जी |
यह गांव विश्व विख्यात नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर की स्थापना किसने और कब कराई इसका कोई प्रमाण नहीं है। ऐसी मान्यता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब की जब यहां मुराद पूरी हुई तो औरंगजेब ने इस गांव का नाम मुरादपुर रख दिया और तभी से इस गांव को मुरादपुर के नाम से जाना जाता है। हालांकि भक्त जनों की यहां सभी मुरादें पूरी होती है इसलिए इस स्थान को मुरादपुर कहा जाता है।
पहले यह प्रतिमा खुले में रखी हुई थी, जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने कई प्रतिभाओं को खंडित किया और इस प्रतिमा को देखकर मंत्रमुग्ध होकर साथ में ले जाने की कोशिश की और इस प्रतिमा को हटाने का प्रयास किया लेकिन प्रतिमा का एक पैर जमीन में होने कारण यह संभव नहीं हो पाया तो पैर को खोजने के लिए काफी खुदाई की गई , लेकिन हनुमान जी का पैर तो नहीं मिला लेकिन एक गहरा तालाब बन गया। यह तालाब आज भी मंदिर के सामने स्थित है ,जिसमें पानी भरा हुआ है।
मंदिर के सामने का तालाब |
मंदिर में विराजित प्रतिमा काफी प्राचीन है एवं विश्राम अवस्था में विराजित है।इस प्रतिमा में भगवान का एक हाथ शीश के नीचे है और दूसरा हाथ सीने से होकर गुजरा है। मस्तक थोड़ा ऊपर उठा हुआ है जबकि एक पैर थोड़ा मुड़ा हुआ है एवं एक पैर जमीन में अंदर की तरफ है। वर्तमान में यह मंदिर भव्य हो गया है । संगमरमर, ग्रेनाइट और कांच की पूरे मंदिर व में सुंदर सजावट कर दी गई है।
राम जानकी मंदिर |
मुरादपुर के वराह :
मुरादपुर मंदिर के पीछे एक भगवान वराह की काफी प्राचीन पाषाण निर्मित प्रतिमा स्थित है। यह प्रतिमा संभवत परमार कालीन है एवं नवीं या दसवी सदी की है ।इस वराह प्रतिमा के मुख्य से पृथ्वी लटकी हुई है। वराह के आसपास कई देवी-देवताओं और गंधर्व की आकृतियां उकेरी रही हैं। कहा जाता है जिसके मन में सही भावना हो वह इस प्रतिमा के नीचे से निकल जाता है, अन्यथा वह प्रतिमा के पैरों में फंस जाता है। इसी कारण अपनी मनोकामनाएं लेकर दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
चित्र दीर्घा :
मंदिर में स्तिथ प्राचीन प्रतिमा |
मुरादपुर तक कैसा पहुंचा जाये : मुरादपुर का नजदीकी रेलवे स्टेशन गंजबासोदा है। यहाँ से आसानी से ऑटो , बस के द्वारा आसानी से जाया जा सकता है।
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Nice information
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