Ashapuri (Raisen ) : Untold story of Ashapuri :
The lost great city of temples of parmar kings:
रायसेन जिला मध्यप्रदेश का एक सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध जिला है। यहाँ विश्व धरोहर भीमबेटका की रॉक पेंटिंग और साँची के बौद्ध स्तूप मौजद है। भोजपुर का ऐतिहासिक अधूरा शिव मंदिर भी यहाँ स्तिथ है। इन सभी बड़ी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के नजदीक ही एक ऐसा स्थान है जो आज गुमनामी में और अंतिम अवस्था में है आशापुरी के मंदिर । हालाँकि अभी इन मंदिरो की रेस्टोरिंग का कार्य चल रहा है और दो मंदिर को मूल स्वरुप में बनाया जा रहा है। आज का ब्लॉग इसी आशापुरी मंदिर समूह पर लिखा गया है।
आशापुरी में तीन मंदिर समूह है : आशादेवी मंदिर, भूतनाथ मंदिर समूह और बिलोटा शिव मंदिर।
Ashapuri is a key site for understanding the architectural history of central India in the medieval period.
यह मंदिर समूह इतना गुमनाम है कि इसके बारे में अधिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। इस मंदिर समूह के बारे में मैंने वर्ष 2021 में पढ़ा था और कई बार गोहरगंज ,भोजपुर तक जाना भी हुआ परन्तु यहाँ तह पहुंचना नहीं हो पाया और अंततः इस माह यहाँ तक पहुँच पाया। यह स्मारक समूह गोहरगंज से करीब 10 km की दूरी पर भोजपुर मंदिर सड़क मार्ग पर स्तिथ है। यहाँ से सड़क मार्ग ठीक है पर भूतनाथ मंदिर तक एकल ग्रामीण रास्ता है और आशादेवी मंदिर तक रास्ता नहीं है पैदल ही जाना होता है। रायसेन से चिकलोद रस्ते से भी यहाँ तक पहुँच सकते है।
रायसेन जिले की गोहरगंज तहसील का गांव आशापुरी परमार और प्रतिहारकाल के मंदिरों के निर्माण का एक प्रमुख केंद्र रहा है। पुरातत्ववेताओ का मानना है कि यहाँ इन मंदिरों के निर्माण में लगभग 200 साल का समय लगा होगा। विश्व धरोहर भीमबेटका से यह स्थान लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और रायसेन जिले मुख्यालय से 70 km की दूरी पर स्तिथ है। खुदाई में यहां 26 मंदिरों के अवशेष मिले थे। भोजपुर के प्रसिद्ध शिवमंदिर के निर्माण के समय यह अवश्य ही परमार राजाओं का कला का मुख्य केंद्र रहा होगा।
आशापुरी के मंदिर: ashapuri temple raisen
मध्य भारत में ऐसे कई मंदिरों के खंडहर विद्यमान है जो संभवतः अपने समय में विख्यात मंदिर रहे होंगे परंतु आशापुरी एक ऐसा स्थान है जहाँ वर्तमान में इन मंदिरों में एक भी मंदिर सुरक्षित स्थिति में नहीं है ,केवल कुछ खंबे और कुछ भी अभी भी यहां खड़े हुए हैं। अन्य सभी मंदिर लगभग नष्ट हो चुके हैं। इसीलिए आशापुरी एक दुर्लभ चुनौती का प्रतिनिधित्व करता है और मध्यकालीन भारतीय मंदिर के केंद्र के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में आज भी विद्यमान है। आशापुरी के मंदिर प्रतिहार और परमार काल के दौरान के एक समृद्ध शहर और निरंतर विकसित रूप में मंदिरों की श्रृंखला के एक गवाही देता है।
नौवीं से 12वीं शताब्दी के मध्य यह एक मंदिरों का विख्यात समूह रहा होगा जिसकी अवशेष आज दिखाई देते हैं। हाल की खुदाई में यहां पर हजारों की संख्या में वास्तु शिल्प और मूर्ति कला के अवशेष मिले हैं और अभी भी कई जमीन में दफन है। दसवीं शताब्दी में मध्य भारत के स्थापत्य कला को समझने के लिए आशापुरी एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यह भोजपुरी के विश्व प्रसिद्ध अधूरे शिव मंदिर से मात्र 6 किलोमीटर की दूर स्थित है। इसके निर्माण का श्रेय भी राजा भोज को दिया जाता है। जब राजा भोज के समय भोजपुर में विशाल शिव मंदिर बनवाया गया और उसके आसपास की चट्टान पर विशाल मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो संभवत आशापुरी एक प्रमुख कला बस्ती रही होगी। भोजपुर की शैलीगत विशेषताओं से पता चलता है कि भोजपुर का निर्माण करने के लिए कारीगर यही से आए होंगे।
Bhumija is a Sanskrit word that literally means "from ground, earth, land", or alternatively "storey".In architectural context, the Bhumija style is discussed in chapter 65 of the Samarangana Sutradhara – an 11th-century Hindu text on classical temple and secular architecture (vastu). It is one of the fourteen styles of north Indian Nagara temple architecture discussed in Aparajitaprccha – another Hindu text on architecture published in the 12th-century
12वीं शताब्दी तक मध्य भारत में मंदिरों की स्थापत्य शैली में एक निरंतरता दिखती है जिसमें गुप्त काल से लगातार परिवर्तन होते होते हैं। यह इस क्षेत्र के नागर मंदिरों के बारे में सच है। मंदिरों की स्थापत्य कला बाद में एक पूर्ण विकसित शिखर रूप में विकसित हुई जिसकी अवधारणा खजुराहो के पूर्ण विकसित मंदिर है। आशापुरी में प्रतिहार शैली में लघु शिखर की श्रृंखला में मंदिर बनाए गए यह नई स्थापत्य कला 11वीं शताब्दी के आसपास उत्पन्न हुई जिसमें छोटे शिखर के मंदिर बनाए गए।
भूतनाथ मंदिर Temple remains near bhootnath of Ashapuri :
परमार कालीन यह भूतनाथ मंदिर भूमिज शैली में बना हुआ मंदिर है। आशा देवी मंदिर समूह का यह सबसे विशाल मंदिर रहा है जो लगभग ध्वस्त अवस्था में है। आशादेवी मंदिर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर यह एक विशाल तालाब के किनारे स्थित है। परमार काल का यह न केवल रायसेन जिले का अपितु सम्पूर्ण मालवा का महत्वपूर्ण कलाकेंद्र है। संभवत है यह भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां से प्राप्त मूर्तियां और अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं यह भगवान विष्णु को समर्पित है और अपने समकालीन भोजपुर मंदिर जितना ही विशाल रहा होगा। यह एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ पूर्व मुखी मंदिर है। वास्तु कला की भूमिज शैली के सिद्धांतों की चर्चा भोज परमार की महान रचना समरांग सूत्रधार में की गई है परमार राजाओ द्वारा विकसित यह शैली दक्षिण भारत में भी बहुत लोकप्रिय हुई थी। भूतनाथ मंदिर का निर्माण इसी भूमिज शैली में किया गया था।
इस मंदिर के खंडहरों में द्वार, तोरण, खंबे जो लता और फल फूलों से सजे हुए हैं द्वार तोरण आदि इस बात की पुष्टि करते हैं। मंदिर का निर्माण गंजबासौदा के समीप उदयपुर के उदयेश्वर मंदिर के समान प्रतीत होता है। इसके शिखर भी काम ऊंचे रहे होंगे। किन्तु मंदिर के सभी अंग निर्मित किये गए थे। यह मंदिर मध्य प्रदेश राज्य पुरातत्त्व विभाग का सरंक्षित स्मारक है।
आशादेवी मंदिर : ashadevi temple
आशादेवी मंदिर संभवत: एक शक्तिपीठ है और यह गांव से 1 किलोमीटर की दूरी पर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसके नजदीक एक विशाल तालाब है और यह मंदिर भी खंडहर अवस्था में है और पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। यह पूर्व मुखी मंदिर है और महिषासुर मर्दिनी देवी को समर्पित है। तुलनात्मक रूप से यह मंदिर काफी छोटा है। संभव है इसमें अर्ध मंडप रहा होगा जो अब ध्वस्त हो गया है। निर्माण कला से देखने पर प्रतीत होता है कि यह भूमिज शैली में बना हुआ मंदिर है जिसका शिखर रहा होगा। इस मंदिर के निर्माण की एक विशेष योजना है। जिसमे प्रत्येक ओर द्वि भद्र रथों का प्रावधान है। हालाँकि तालविन्यास में गर्भ गृह की योजना थी। संभवत: यह एक शक्तिपीठ होगी जो तांत्रिक क्रिया करने के लिए या मां दुर्गा की पूजा या महिषासुर मर्दिनी देवी को समर्पित होगा। वर्तमान में यह आशा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है और इसी नाम पर गांव का नाम भी आशापुरी हुआ है। आशा देवी महिषासुर मर्दानी का ही एक रूप है जो गांव की फसल, पशुओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए पूजा की जाती थी।शैलीगत आधार पर यह 10 वी शती का प्रतीत होता है।
इस बार मैं आशादेवी मंदिर और बिलोटा शिव मंदिर तक नहीं पहुँच पाया परन्तु अगले ब्लॉग में यह दोनों मंदिर जरूर कवर करूँगा।
आशापुरी संग्रहालय :
आशादेवी मंदिर के तरफ जाते हुए पहले यहाँ का संग्रहालय बना हुआ है जिसमे कई मूर्तियां सुरक्षित रखी हुई है। जिसकी फीस 20 रुपए है। यह संग्रहालय आपको अवश्य देखना चाहिए. भगवन गणेश की एक विशाल मूर्ती यहाँ का मुख्य आकर्षण है।
आशापुरी मंदिर समूह तक पहुंचे कैसे : How to reach Ashapuri group of temples
आशापुरी का तहसील गोहरगंज है जो यहाँ से 10 km की दूरी पर स्तिथ है। भोपाल से इसकी दूरी 30 km और रायसेन जिला मुख्यालय से 70 km की दूरी पर स्तिथ है। भोपाल से आसानी से ऑटो और बस उपलब्ध है। सभी जगह पथ प्रदर्शक लगे हुए है। जब भी यहाँ आये तो बिलोटा शिव मंदिर और संग्रहालय जरूर देखे क्योंकि यह मुख्य रस्ते से अलग है।
8 Comments
Tremendous
ReplyDeleteIndia's historical prosperity depicted in this blog very nicely
ReplyDeleteप्रकृति की गोद में सनातन संस्कृति के अनुपम साक्ष्य से भरे ये देवालय🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteOur ancient culture defined in very picturesque way🙏🙏
ReplyDelete🙏🌷🌷🎄⛳🇳🇪
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मनमोहक छवि के साथ सरल विस्तृत वर्णन अकल्पनीय है आपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteThrough this blog of yours, by reviving our lost heritage you have given important information to today's youth, which is commendable. Congratulations to your so grateful effort.
ReplyDeleteसुंदर संकलन
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