भोपाल विलीनीकरण और बोरास के आंदोलन का महत्व :
The merger of Bhopal in India and martyrs of Boras :
15 अगस्त 1947 को आजाद होने के बाद भी भोपाल में तिरंगा लहराने पर की पाबंदी और मार दी जाती थी गोली। जलियांवाला बाग हत्याकांड को भारत के आजादी के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है और याद किया जाता है,उसी प्रकार मध्यप्रदेश के भोपाल के आजादी आंदोलन में बोरास के हत्याकांड को लेकर 14 जनवरी 1949 को मकर संक्रांति पर घटना हुई थी जिसे बोरास कांड कहा जाता है। बोरास कांड की स्मृतियां आज भी उस क्षेत्र में एक एक आदमी के जेहन में बरकरार है।
पढ़िए आज का विशेष ब्लॉग भोपाल के विलीनीकरण और बोरास के अमर बलिदान आंदोलन पर :
यह तो हम सभी जानते हैं कि 14 अगस्त 1947 की रात्रि को भारत गुलामी की बेड़ियों को काटकर आजाद हो गया था और पूरे देश में आजादी की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह तिरंगा लहराया जा रहा था। 15 अगस्त की प्रातः सूरज की किरणों ने जैसे ही भारत की धरती को छुआ लोग हाथों में तिरंगा लेकर खुशियां मनाने लगे। पूरे पूरे देश में हर गली मोहल्ले में उत्सव जैसा माहौल था , लोग एक दूसरे को मिठाईयां खिला रहे थे।
परंतु इसके अलावा कुछ जगह ऐसी भी थी जो आजाद होने के बाद भी आजाद नहीं थी और तिरंगा फहराना यहां मंजूर नहीं था। ऐसा ही एक स्थान था भोपाल। वास्तव में आजादी के समय देश में छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 565 रियासतें थी। इनमें से लगभग 500 रियासतों ने आजादी के साथ ही भारत में विलय को स्वीकार कर लिया था, लेकिन 5 रियासतों ने भारतीय संघ में शामिल होने से मना कर दिया था। इन्हीं में से एक रियासत थी भोपाल स्टेट। यहां 15 अगस्त को उत्सव मनाना तो दूर तिरंगा फहराना भी सख्त मना था। जो लोग तिरंगा फहराने की कोशिश करते थे तो या तो उन्हें जेलों में डाल दिया जाता है था या गोली मार दी जाती थी। कई दौर के संघर्ष के बाद 658 दिन बाद भोपाल में नवाबी शासन खत्म हुआ और 1 जून 1949 को भारतीय संघ में विलीनीकरण के बाद भोपाल भारत का हिस्सा बना।
लेकिन यह सब पढ़ने में जितना आसान लगता है 658 दिन का दौर बहुत ही कठिन था और कई नौजवानों को इसमें अपनी जान गंवानी पड़ी और कई लोगों को जेलों की कठोर यातनाएं झेलनी पड़ी । स्थिति यह थी कि जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसे ताकतवर रियासतों को मिलाने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल को भी इतना लंबा इंतजार करना पड़ा। आजादी के समय रियासतों के पास था भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प। इस प्रावधान में देश में एक नया संघर्ष पैदा कर दिया। आजादी के समय 565 रियासतें थी यह रियासतें 48% भारतीय क्षेत्र और 28% आबादी को प्रतिनिधित्व करती थी। पाकिस्तान की ओर से जिन्ना इन रियासतों को अपने में मिलाना चाहते थे वही भारत की ओर से यह जिम्मा लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीपी मेनन ने संभाल रखा था। सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में 561 रियासतों ने भारत में शामिल होने का फैसला कर लिया था केवल हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल के नवाब पाकिस्तान के प्रभाव में आ रहे थे। 1948 तक जूनागढ़ हैदराबाद और कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था लेकिन भोपाल स्टेट का विलय मुश्किल हो रहा था। भोपाल स्टेट के नवाब हमीदुल्लाह खान भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे जबकि भोपाल की प्रजा स्वतंत्र भारत में शामिल होना चाहती थी।
देसी रियासतों में जनता को दोहरी गुलामी झेलनी होती थी पहले अंग्रेजों की और दूसरी राजा नवाबों की। इसीलिए रियासतों का स्वतंत्रता संघर्ष और भी कठिन हो गया था। सरदार पटेल ने कहा था कि भोपाल की जनता के समर्थन के बगैर हम कुछ नहीं कह सकते। उन्होंने कहा कि भोपाल के हालात बदलने के लिए वहां के नौजवानों को ही अंतिम लड़ाई लड़नी होगी।
बोरास घाट |
रायसेन के बरेली में लिखा गया इस आंदोलन का पहला अध्याय :
भोपाल रियासत के भारत में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आंदोलन की रणनीति का प्रमुख केंद्र रायसेन जिला था। चार दिसंबर 1948 को बरेली में एक सभा आयोजित की जाती है और पहली दफा खुले तौर पर भोपाल की आजादी के नारे लगाए जाते हैं। इस आंदोलन से नवाब बौखलाकर 6 दिसंबर को विलीनीकरण आंदोलन के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश देते हैं और पुलिस सभी नेताओं को गिरफ्तार करती है और एक कठोर बंदिश का दौर शुरू हो जाता है। 1949 की 6 और 14 जनवरी इस टकराव के लिए अंतिम बिंदु साबित होते हैं। 6 जनवरी को बरेली के साप्ताहिक बाजार का दिन गुरुवार था। इस दिन विलीनीकरण के आंदोलन के लिए एक सभा आयोजित की गई दोपहर 12:00 बजे तक लगभग पांच हजार ग्रामीण इकट्ठा हो गए थे। लगभग 2:45 बज चुके थे और सभा कुछ देर में शुरू होने वाली थी। तभी नवाबी पुलिस ने वहां बैठे आम जनता पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया और किसी को नहीं छोड़ा। शाम 6:00 बजे तक पूरे बरेली में कर्फ्यू लगा दिया गया और अत्याचार की चरम सीमा का उल्लंघन किया गया।
नर्मदा के तट पर बोरास घाट में चार युवा शहीदों के खून से रंगा तिरंगा और मां नर्मदा का पानी :
बरेली में हुए इस अत्याचार से लोगों में स्वतंत्रता की भावना और भड़क गई। भोपाल की सेंट्रल जेल और बैरागढ़ की जेल विलीनीकरण के बंदियों से भर गई। कई अस्थाई जेलें बनाई गई। रायसेन जिले में उदयपुरा के नजदीक बोरास के ग्रामीणों ने तय किया कि 14 जनवरी को तिरंगा फहरा कर भोपाल में आजादी का नारा बुलंद करेंगे। 14 जनवरी को मकर संक्रांति का दिन था। नर्मदा के तट पर बोरास घाट पर मेला लगा हुआ था। हजारों की तादाद में आम जनता यहां उपस्थित थी। यहीं पर एक आम सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें लगभग 25000 लोग शामिल हुए। सभी बड़े नेताओ को पहले ही गिरफ्तार करवा दिया गया था। युवाओ में आजादी का जोश था। इसी स्थान पर भोपाल रियासत के थानेदार जफर ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा दी थी। पुलिस व्यवस्था में ड्यूटी पर नबाबी शासन के थानेदार जफर अली तैनात थे। बीच सभा में ग्राम भुआरा के 26 वर्षीय युवक विशाल सिंह वंदे मातरम का गान करते हुए हाथ में तिरंगा लेकर मंच की ओर बढ़े। विशाल सिंह ने अपनी लाठी से थानेदार जफर अली का हेट गिरा दिया। गुस्सा होकर जफर अली ने विशाल सिंह के पांव में गोली मारी। विशाल सिंह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। उनके गिरते ही ग्राम बोरास के 16 वर्षीय छोटेलाल ने हाथों में तिरंगा थामा और तिरंगा लेकर आगे बढ़े, लेकिन पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। गिरने से पहले छोटेलाल ने तिरंगा सुल्तानगंज के 25 वर्षीय युवक धन सिंह को थमा दिया। लेकिन पुलिस का अत्याचार यहां भी नहीं रुका और धन सिंह को भी पुलिस ने गोली मार दी। इसके बाद बोरास के 30 वर्षीय युवक मंगल सिंह ने तिरंगा थामा। लेकिन वह भी पुलिस की गोली के शिकार हुए। अब तक विशाल सिंह को होश आ चुका था और उन्होंने मंगल सिंह से झंडा अपने हाथ में लिया और आगे बढ़ चले। पुलिस से कहा कि अब गोली मेरे सीने पर मारो तो थानेदार जफर अली ने दो गोलियां विशाल के सीने में मारी। 4 युवा नौजवान मातृभूमि की सेवा में शहीद हो गए लेकिन तिरंगा झंडा नहीं गिरने दिया। थानेदार जफर अली की इस हरकत ने सभा स्थल को जंग के मैदान में बदल दिया और बोरास का नर्मदा घाट खूनी मैदान में बदल गया। नर्मदा के तट पर बोरास में भारत मां की जय की जयकार ने बंदूक से निकलने वाली गोलियों की आवाज़ को दबा दिया। 16 जनवरी को चारों शहीदों की अंतिम यात्रा निकाली गयी जिसमे हजारों की संख्या में जनता शामिल हुई और नर्मदा के दूसरे तट पर गाडरवारा में सभी अमर शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया।
उस दौर के प्रमुख साप्ताहिक समाचार पत्र नई राह में शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा : बरेली की आहुतियां, बलिदान स्थल वह बोरास इनकी अमर दिव्य गाथा को भूल सकेगा क्या इतिहास। राष्ट्रकवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा उस दिन जब बोरास घाट पर रंगा रक्त से राष्ट्र तिरंगा,सामंती चट्टानें टूटी बहने लगी विलय गंगा। इस घटना के बाद समूचे भोपाल में आक्रोश फैला और विलीनीकरण के लिए यह नवाबी शासन के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ। बोरास के इस नरसंहार में चार निहत्थे 30 साल से कम युवकों के मारे जाने की खबर आग की तेजी से पूरी भोपाल स्टेट में फैल गयी। 15 जनवरी 1949 को पोस्ट के जरिए बोरास घटना की जानकारी दिल्ली तक पहुंची। संदेश मिलते ही सरदार पटेल के मुंह से निकला अब इंतजार खत्म हुआ बहुत हुई नबाबी। 30 जनवरी को नवाब का मंत्रिमंडल भंग कर दिया गया। 6- 7 फरवरी तक लगभग सभी कैदी रिहा कर दिए गये। 4 महीनों तक सरकार और नवाब के बीच बातचीत का दौर चलता रहा। 30 अप्रैल 1949 को मर्जर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए और भारत की आजादी के 2 साल बाद,1 जून 1949 को केंद्र सरकार ने भोपाल की सत्ता संभाली और 1 जून 1949 की सुबह पहली बार तिरंगा झंडा भोपाल में फहराया गया।
इन शहीदों की स्मृति में उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर 14 जनवरी 1984 में शहीद स्मारक को बनाया गया जहां प्रतिवर्ष 14 जनवरी को बोरास कांड की बरसी आयोजित की जाती है। नर्मदा के साथ साथ यह बोरस का शहीद स्मारक भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है। सादर नमन है बोरास की पावन धरा को और उन शहीदों को।
22 Comments
Thank u sir for this informative blog... very useful😊
ReplyDeleteThanks priya
DeleteNice information sir ji
ReplyDeleteThank you so much
DeleteThanks a lot
ReplyDeleteVery important knowledge sirji🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और मार्मिक। धन्यवाद।
ReplyDeleteहमारे इतिहास से अबगत करने के लिए आपका बहुत आभार सर् 🙏🙏
ReplyDeleteभोपाल (स्टेट) रियासत बिलीनीकरण के इतिहास के बारे मे इससे पहले इतनी गहराई से कहीं लेख पढ़ने नहीं मिला.... बहुत ही सुंदर लेख.... धन्यवाद सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रमोद
DeleteBahut saargarbhit jaankari hai sir.pahli baar padha ye itihaas...
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteBahut hi rahasmay etihas sir ji
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteशहीदों के ज्वलंत बलिदान से गर्वित है राजा भोज की नगरी ।
ReplyDeleteअत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी🙏🏻
धन्यवाद अभिषेक
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteDhanywad
Deleteखूबसूरत और ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteThank you
DeleteSir bhopal ki hystory k toh kuch ptaa hi nhi tha mujhe aaj tak hat's off.
ReplyDeleteMp ko aapne abhi tak jesaa deeply introduce Kiya h Bo mujhe feel karaata ki we are in such place where is abundance of greatness at the top.👌💯🙏
धन्यवाद सोनाली 👍
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