रायसेन की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर : रायसेन का किला (Raisen Fort) :
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Raisen fort |
मित्रों आज के ब्लॉग में, मैं मध्यप्रदेश के उस स्थान के बारे में चर्चा करूँगा जो भोपाल के सबसे नजदीकी जिले में शामिल है और कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से भरपूर होने के बाद भी मध्यप्रदेश के पिछड़े जिलों में शामिल होता है। रायसेन जिला भोपाल खजुराहो राज्य मार्ग पर भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रायसेन जिला ,जितना अन्य जिलों के मुकाबले विकास में पीछे नजर आता है उतना ही सांस्कृतिक और इतिहास के योगदान के संदर्भ में अमूल्य सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इसकी महत्ता आप इसी बात से समझ सकते है कि (UNESCO World Heritage Sites / Madhya Pradesh) मध्य प्रदेश के तीन वर्ल्ड हेरिटेज स्थानों में दो स्थान रायसेन जिले में आते है।
साँची पर मै ब्लॉग लिख चुका हूँ जिसकी लिंक नीचे दी गयी है जिसे क्लिक कर आप पढ़ सकते है और जल्द ही भीम बेटका पर भी एक ब्लॉग लिखूंगा।
यह स्थान भारतीय उपमहाद्वीप में मानवीय जीवन के सबसे प्राचीनतम चिन्ह है। पूर्व पाषाणकाल से मध्य ऐतिहासिक काल के दौरान यह स्थान मानव गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा है। नर्मदा घाटी में मानव जीवन का प्रारंभिक काल यही स्थान रहा है। विगत वर्ष से कई बार रायसेन जिले में आना हुआ। रायसेन में संस्कृति और इतिहास का इतना विस्तृत खजाना है जिसे एक ब्लॉग में शामिल करना संभव नहीं है इसलिए अब रायसेन पर नयी सीरीज प्रारम्भ कर रहा हूँ जिसका पहला भाग आज रायसेन किले पर आधारित है।
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रायसेन किले का प्रवेश द्वार |
रायसेन का मालवा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि पूर्व के ऐतिहासिक संदर्भ में रायसेन का उल्लेख नहीं मिलता है। यहां की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों में है रायसेन का किला। यह किला विंध्याचल पर्वतमाला की टेढ़ी-मेढ़ी श्रृंखलाओं के शिखर पर स्थित है। दुर्ग इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि लगभग 20 से 30 किलोमीटर की दूरी से ही यह दिखने लगता है।
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Raisen fort |
जन श्रुतियों के अनुसार रायसेन का नाम यहां के संस्थापक राय सिंह के नाम पर पड़ा। रायसेन का किला बलुआ पत्थर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। रायसेन का नाम सम्भवतः राजवासिनी अथवा राजशयन अर्थात राजा का शाही निवास शब्द का अपभ्रंश है। किले की तलहटी में रायसेन नगर बसा हुआ है। यह पहाड़ी आदिकाल से ही मानव की निवास स्थली रही है। पहाड़ी की तलहटी में कई आदिमानव द्वारा निर्मित शैलचित्र है जिन्हे मैं अपने अगले ब्लॉग में शामिल करने का प्रयास करूँगा। 6 th BC में रायसेन अवंतिका महाजनपद का भाग हुआ करता था। पुरातात्विक सर्वेक्षण में 5-6 वी शताब्दी के अवशेष भी यहाँ से प्राप्त होते है।
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रायसेन किला |
परमार कालीन 10-11 वीं सदी के अवशेष किले की दीवारों में चुने हुए मिलते है। मध्य काल में रायसेन का किला देश का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य बिंदु था। इस दुर्ग में 9 द्वार और 13 बुर्ज हैं। किले की दीवारें 6 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। इस किले का जो आज स्वरूप हम देखते है वह स्थानीय राजपूत राजाओं के समय निर्मित किया गया है। विदिशा के नजदीकी होने के कारण यह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
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Raisen fort |
रायसेन किले का इतिहास : History of Raisen Fort :
रायसेन किले के प्राचीन इतिहास का प्रारंभिक पता नहीं चलता है, हालांकि अबुल फजल ने रायसेन दुर्ग को प्राचीन दुर्ग माना है। मोहम्मद कासिम ने भी इस किले को प्राचीन माना है। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ही रायसेन दुर्ग पर आक्रमण का सिलसिला प्रारंभ होता है जिनका विवरण इतिहास में मिलना पाया जाता है। सन 1234 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने मालवा पर आक्रमण किया तब परमार शासकों से रायसेन उसके कब्जे में आ गया था। सन 1293 ईसवी में दिल्ली के शासक अल्लाउद्दीन खिलजी का इस किले पर शासन था। इसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले पर कब्ज़ा किया। 14वीं शताब्दी से लगभग 100 वर्षों तक यह किला मालवा सल्तनत के अधीन रहा। सन 1485 के आसपास गयासुद्दीन खिलजी के शासनकाल में मस्जिद, मदरसा और इमारतें बनी जिसका उल्लेख शिलालेख में पाया जाता है। मालवा के सुल्तानों ने जिन पुरविया राजपूतों को महत्वपूर्ण स्थान दिया था वह बाद में प्रभावशील हो गए थे और यह किला बाद में हिंदू शासकों के अधीन आ गया था।
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रायसेन किला |
रायसेन के स्थानीय शासक राजपूत थे। इनके 9 शासकों की वंशावली में सिलहादी अथवा सिलहड़ी नाम का एक शिलालेख रायसेन के किले में मिला जो सन 1525 का है। यह सिलहड़ी वही था जिसने सन 1527 के खानवा के युद्ध में बाबर के विरुद्ध राणा सांगा का साथ दिया था। इस घटना का विवरण बाबर ने अपने रोजाना रोजनामचे में किया है। सन 1528 में सिल्हड़ी को मांडू के किले में कैद कर लिया गया था और सिल्हड़ी के भाई लक्ष्मण सेन को यहाँ का राजा बना दिया गया था। सन 1531-32 में गुजरात के बहादुर शाह ने मालवा पर अधिकार किया तो रायसेन शिलादित्य के पास ही रहने दिया। इतिहास में शिलादित्य को ही सिलहड़ी नाम से जाना गया है। बाद में बहादुर शाह को सिलहड़ी पर शक हुआ तो उसने रायसेन किले पर डेरा डाल दिया और शिलादित्य को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया। हार को देखते हुए शिलादित्य ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और अपना नाम सलाउद्दीन रख लिया जिसे इतिहास में बाद में सिलहड़ी माना गया। सन 1537 में कादिरशाह मालवा का सुल्तान बना और सिलहडी के बेटे पूरणमल को रायसेन का किला सौंप दिया। बाद में यही पूरनमल अपने समय का बहुत पराक्रमी शासक बना। यहां तक कि पूरनमल ने चंदेरी को भी अपने राज्य में मिला लिया था।
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रायसेन किले का द्वार |
शेरशाह सूरी ने रायसेन किले को जीतने के लिए अपने पुत्र जलाल खान को भेजा जिसके सफल न होने पर स्वयं शेरशाह को यहां आना पड़ा। सन 1543 में शेरशाह सूरी ने रायसेन के किले पर घेरा डाला और लगभग 6 माह तक घेरा चलता रहा। अंत में शेरशाह ने कूटनीति से काम लिया और पूरनमल को बनारस की सूबेदारी देने का वादा किया। लेकिन बाद में धोखे से शेरशाह सूरी ने पूरनमल के परिवार और सेना को मौत के घाट उतार दिया। परंतु इससे पहले ही ज्यादातर महिलाओं को उनके पति पहले ही मार चुके थे। जिससे कि वह मुस्लिमों के हाथ ना लगे। जब राजा पूरनमल को मालूम पड़ा कि वह धोखे का शिकार हो गया है, तो उसने अपनी पत्नी रत्नावली का स्वयं सिर काट दिया था जिससे वह शत्रुओं के हाथ न लगे।जून 1543 ई. में रानी रत्नावली समेत कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान हुआ। यह यह घटना शेरशाह सूरी के चरित्र पर एक कलंक के रूप में याद की जाती है।
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रायसेन किला |
शेरशाह सूरी ने सुजात खान को अपना सूबेदार बनाया जो बाद में स्वतंत्र हो गया उसका पुत्र बाज बहादुर मालवा का अंतिम सुल्तान बना। संत 1561 में मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण कर मालवा को अपना एक प्रांत बना लिया।शेरशाह सूरी के बाद रायसेन का किला मुगल साम्राज्य में रहा। मुग़ल शासक औरंगजेब ने इस किले के सामरिक महत्त्व को देखते हुए इसकी दीवालों के मरम्मत करवाई थी। मुगलों के पतन के बाद 18 वी सदी में रायसेन का किला भोपाल रियासत के अधीन हो गया था। बाद में सन 1861 में यह किला अंग्रेजो के अधिपत्य में चला गया। रायसेन किले के ऐतिहासिक महत्व एवं स्थापत्य को देखते हुए भारत शासन ने सन 1951 में इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया।
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रायसेन किला |
कहते हैं कि पहले इस किले में 34 झीले और जलाशय थे जिनमें केवल 15 बचे हुए हैं। वर्तमान समय में किले में केवल 7 या 8 भवन ही शेष बचे हैं. महलों में बादल महल, रोहिणी महल, इत्र दान महल, हवा महल हैं। इसमें इत्र दान महल सबसे खूबसूरत है और इसके 10 दरवाजे हैं इसकी एक मंजिल नीचे भी है। बादल महल और रोहिणी महल तीन मंजिला है। यह सभी महल अपने समय के वास्तुकला का श्रेष्ठ नमूना प्रस्तुत करते हैं। 70 से 80 खंभों पर टिका हुआ हवामहल भी काफी विस्तृत है। शेर शाह सूरी द्वारा बनवाई गई मस्जिद और मदरसा आज भी अच्छी हालत में है। दुर्ग पर एक भव्य शिव मंदिर भी है। मुगल बादशाह अकबर द्वारा 1592 से 1595 के बीच कई भवनों और किलेबंदी की मरम्मत कराई गई थी। रायसेन दुर्ग का किलेबंदी मजबूत बुजुर्गों से सुरक्षित है और इसका क्षेत्रफल 480 एकड़ है। इन बुर्जो में से तीन पूरब में, तीन पश्चिम में और दो दक्षिण में है। दुर्ग के प्रमुख दरवाजों में गढ़ी,हाथी,भोपाल, दिल्ली और निजाम के नाम से जाने जाते हैं। किले पर जाने के लिए उत्तर और पूर्व की ओर से एक सीढ़ीदार मार्ग बना हुआ है। यह दुर्ग कई महत्वपूर्ण युद्धों का गवाह है। 13 वी शताब्दी के बाद कई वर्षों तक दुर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका इतिहास में बनी रही। अकबर के काल में रायसेन उज्जैन सूबे का मुख्यालय था है।
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रायसेन किला प्रवेश द्वार |
रायसेन किले का हजारो साल पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम :
इस किले को लेकर कई किंवदंतियां हैं। इसकी चार दीवारी में हर साधन और भवन के कई हिस्से मौजूद हैं। लेकिन, यहां की खास चीज है उस जमाने का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम। यह सिस्टम देश के अन्य किलों में नहीं दिखती हैं। करीब दस वर्ग किमी में फैले इस किले की पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में जमा होता है। जानकारों का कहना है कि सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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रायसेन किले का विहंगम दृश्य |
किले पर पैदल रास्ते से आने पर करीब 175 सीढिया चलनी पड़ती है। इस दौरान किले की प्राचीर और मुख्य दरवाजा दिल्ली दरवाजा पड़ता है। सबसे पहले कोस मीनार आपका स्वागत करती है। कोस मीनार का प्रयोग शेरशाह सूरी के समय सड़कों को नियमित अंतराल पर चिन्हित करने के लिए किया जाता था।
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कोस मीनार रायसेन किला |
कोस मीनार के आगे चलने पर दो तरफ रास्ता जाता है। एक रास्ता मदागन तालाब की तरफ जाता है और दूसरा रास्ता कचहरी होते हुए बादलमहल की तरफ चला जाता है। इस हिस्से में मुख्य स्थानों में पेमिया मंदिर, मोतिया तालाब, मदागन तालाब, रानी महल, बादल महल, बारादरी, इत्रदान, तोपे ,जिंजरी महल, पीर सलाउद्दीन की दरगाह ,धोबी महल ,डोला डोली तालाब शामिल है।
पीर शेख सलाहुद्दीन की दरगाह :
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शेख सलाहुद्दीन की दरगाह |
जैसा की ऊपर विवरण दिया है कि सन 1531-32 में गुजरात के बहादुर शाह ने मालवा पर अधिकार किया तो रायसेन शिलादित्य के पास ही रहने दिया। इतिहास में शिलादित्य को ही सिलहड़ी नाम से जाना गया है। बाद में बहादुर शाह को सिलहड़ी पर शक हुआ तो उसने रायसेन किले पर डेरा डाल दिया और शिलादित्य को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया। हार को देखते हुए शिलादित्य ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और अपना नाम सलाउद्दीन रख लिया जिसे इतिहास में बाद में सिलहड़ी माना गया।
6 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावती और 700 राजपूतानियों का जौहर :
लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उसके रायसेन वापस लौटने से पूर्व ही 6 मई 1532 ई. को उसकी पत्नी दुर्गावती ने लगभग 700 अन्य महिलाओं के साथ किले पर ही कुंड में जौहर किया था। रानी दुर्गावती के इस बलिदान ने इस दुर्ग को इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दिया। 10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का किले पर युद्ध में बलिदान हुआ।बाद में उन्हें पीर मान लिए जाने पर इस दरगाह का निर्माण हुआ।
इत्र दान अथवा अतरदान का महल ( Atardan ka mahal ) :
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atardan ka mahal raisen |
यह कक्ष अतरदान के महल के नाम से भी जाना जाता है। सम्भवतः यह कक्ष सिंगार कक्ष की तरह प्रयोग किया जाता होगा। इसकी दीवालों पर बने आले इत्र की रंगबिरंगी शीशियों को रखने के लिए प्रयुक्त होते होंगे। इसके अतिरिक्त इस कक्ष को सम्भवतः मनोरंजन के लिए भी प्रयोग किया जाता था। कक्ष के दोनों ओर की दीवार में दो दरवाजे है जिनके मध्य एक एक आला बना हुआ है। यदि इनमे एक किसी आले में कोई व्यक्ति अत्यंत धीमे स्वर में बोले तब भी आप दूसरे आले में उसकी ध्वनि स्पष्ट सुन सकते है। मध्ययुगीन यह कक्ष स्थापत्य कला में ध्वनि विज्ञान के नियमो सफल प्रयोग का अप्रतिम उदहारण है।
रायसेन किले की तोपे : ( Cannons of Raisen fort ) :
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Cannons of Raisen fort |
तारीखे शेरशाही में वर्णित है कि दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी चार माह की घेराबंदी के बाद भी जब रायसेन के किले को नहीं जीत पाया तब उसने तांबे के सिक्को आदि को गलवा कर तोपों का निर्माण करवाया जिसके बाद वह रायसेन के किले को जितने में सफल हुआ।
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रायसेन किले पर स्तिथ तोपें |
यह तोपें ढलवा लोहे से निर्मित की गयी है। अनेको बार इन तोपों पर तोप ,तोपचियों ,शासक तथा निर्माण स्थान का उल्लेख भी होता था। सागर ताल के निकट की बुर्जी पर रखी किले की सबसे बड़ी तोप का नाम गर्भ गिरावन था। यहाँ से प्राप्त एक तोप पर उत्कीर्ण अभिलेख से ज्ञात होता है कि वह तोप भोपाल के नबाब फैज बहादुर के काल में सन 1763-64 में रम फैक्ट्री भोपाल में निर्मित की गयी थी।
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तोप पर उत्कीर्ण अभिलेख रायसेन |
सोमेश्वर शिव मंदिर रायसेन : ( Someshwar Mahadev Shiv Mandir Raisen )
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सोमेश्वर महादेव मंदिर रायसेन |
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सोमेश्वर महादेव शिवलिंग |
रायसेन दुर्ग पर प्रवेश करते ही प्राचीन सोमेश्वर महादेव शिव मंदिर है। सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इसे परमारकालीन राजा उदयादित्य ने बनवाया था। मंदिर में भगवान शंकर के 2 शिवलिंग स्थापित हैं।इस मंदिर का द्वार वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के अवसर पर ही खुलता है।आजादी के बाद रायसेन किले पर स्थित प्राचीन सोमेश्वर महादेव मंदिर और मस्जिद का विवाद खड़ा हुआ और पुरातत्व विभाग ने मंदिर में ताले लगा दिए.तब से 1974 तक मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर पाता था.1974 में रायसेन नगर के समाज और संगठनों ने मंदिर के ताले खोलने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू किया. तब तत्कालीन CM प्रकाश चंद सेठी ने खुद किला पहाड़ी स्थित मंदिर पहुंचकर ताले खुलवाए और महाशिवरात्रि पर मंदिर परिसर में एक विशाल मेले का आयोजन किया.तब से साल में एक बार महाशिवरात्रि के दिन ही मंदिर के ताले खोलने की व्यवस्था लागू की गई जो आज भी जारी है.
रायसेन का किला सतह से 150 मीटर की ऊँची पहाड़ी पर स्तिथ है। इस पहाड़ी के पश्चिम में बेतवा नदी, उत्तर पूर्व में डाबर नदी, दक्षिण में रीछन नदी और ऊँची पहाड़िया इसे दुर्गम बनाती है। इस किले के दीवारे लगभग 5 किलोमीटर लम्बी है।
मित्रो आज का ब्लॉग कुछ लम्बा हो गया है। कोशिश की है कि आपको इस किले के बारे में अधिक से अधिक जानकारी उपलब्ध करा सकूँ। फिर भी बहुत कुछ अभी भी छूट गया है जिसे एक ब्लॉग में और और शामिल करने का प्रयास करूँगा। जैसे किले के अन्य प्रमुख द्वार , राम छज्जा , किले की तलहटी में बने शैल चित्र , आदि महत्वपूर्ण स्थान।
रायसेन किले तक पहुंचे कैसे ( How to reach raisen fort ) :
रायसेन भोपाल से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। बस सर्विस की अच्छी सुविधा है। सड़क मार्ग की दूरी 45 किलोमीटर के लगभग है। नजदीकी रेलवे स्टेशन भोपाल और विदिशा है। टैक्सी आदि भी आसानी से मिल जाती है। किले का कोई शुल्क नहीं है। कार आदि की पार्किंग की भी सुविधा है। यहाँ आने सबसे अच्छा समय मानसून और सर्दी के समय का है। उस समय प्रकृति का सौंदर्य और चारो तरह हरियाली मन मोहने वाली होती है।
चित्र दीर्घा रायसेन किला : photo gallery of Raisen fort :
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रायसेन फोर्ट |
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Raisen Fort |
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रायसेन किला |
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मदागन तालाब रायसेन किला |
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रायसेन किला से विहंगम दृश्य |
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रायसेन किला |
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मदागन तालाब रायसेन किला |
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raisen fort |
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Badal mahal raisen fort |
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badal mahal raisen fort |
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रायसेन किला तालाब |
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रायसेन किला स्तिथ खण्डर रोहिणी महल |
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रायसेन किला हवा महल |
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रायसेन किले की अवशेष |
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रायसेन किला |
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रायसेन किला रानी महल |
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रायसेन किले की प्राचीर |
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रायसेन किला |
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रायसेन किले की तोपे |
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रायसेन किला बारादरी |
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तोप पर नक्काशी |
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रायसेन किला स्तिथ तोपे |
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रायसेन किला तोप |
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रायसेन किला स्तिथ तोप |
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रायसेन किला |
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रायसेन किला |
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ढोल ढोली तालाब रायसेन किला |
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रायसेन किला मस्जिद |
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रायसेन किले स्तिथ सोमेश्वर मंदिर |
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धोबी महल रायसेन किला |
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धोबी महल रायसेन किला |
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रायसेन शहर |
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रायसेन किला मस्जिद |
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रायसेन किले से दृश्य |
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रायसेन किले का शिलालेख |
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रायसेन किले की बारादरी |
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सोमेश्वर महादेव मंदिर रायसेन |
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सोमेश्वर महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार |
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सोमेश्वर महादेव शिवलिंग रायसेन |
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सोमेश्वर महादेव मंदिर रायसेन |
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बादल महल रायसेन |
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रायसेन किले का पैदल रास्ता |
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रायसेन किले की तलहटी |
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रायसेन शहर से किले का दृश्य |
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रायसेन किले का रास्ता |
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रायसेन किले की तलहटी |
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रायसेन किले से शहर का दृश्य |
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रायसेन किले का रास्ता |
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रायसेन किले की प्राचीर |
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रायसेन किला |
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रायसेन किला रास्ता |
24 Comments
शानदार एवं जानने योग्य जानकारी, कई बार गये पर पढ़ने के बाद की जानकारी और फोटो सेशन प्रफुल्लित हो गया, बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद सर🙏
DeleteAwesome
Delete👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteI have been following your blogs since starting and it's very descriptive and informative. 😊😊😊😊
ReplyDeleteधन्यवाद हेमंत
DeleteValuable ancient facts and information provided.
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप
DeleteVery deep description of histerical significance of this fort,nice sir
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteबेहद खूबसूरत चित्रण और वर्णन। सभी के लिए अत्यंत लाभदायक जानकारी।
ReplyDeleteThanks a lot
DeleteImportant knowledge🙏🙏🙏 sirji
ReplyDeleteThank you so much
Delete👍👍
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
DeleteNice Sir ji Knowledge full information
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteआपकी जानकारी महत्वपूर्ण है ,परंतु रायसेन का इतिहास बहुत अधिक पुराना होना चाहिए ,इस पर गहन शोध की आवश्यकता है ,रायसेन के पास ही सांची है जो कि आसानी से आसपास देखे जा सकते है , ये दोनों ही ऐतिहासिक पूरा सम्पदाएँ ,इतने पास होकर भी एक दूसरे से अछूती कैसे हो सकती है जबकि रायसेन के चहु ओर अनेक स्तूप है ,अनेक शैल चित्र ,भित्ति चित्र है ,जो हज़ारों वर्ष पुराने है ,एक ओर तथ्य कि ये सभी सम्पदाएँ बेतवा नदी के किनारे ही है ,भोजपुर ओर भीम बैठक भी आसपास है , ऐतिहासिक नगर विदिशा से भी रायसेन का किला आसानी से देखा जा सकता है ,फिर ऐसा क्या है जो
ReplyDeleteरायसेन के वैभव की गाथा अधूरी है , आवश्यक है कि सभी बिखरी कड़ियों को जोड़कर सम्रद्ध विभव गाथा का पुनर्लेखन किया जाए
Sir किले की अदभुद प्राचीर, किले के आसपास की अलौकिक छटा ,सबसे नायाब तोप और उसकी नक्काशी, भिन्न शिवलिंग और मूक बलिदान और ना जानें कितने संग्रह छिपे हुए हैं हमारे इन किलों में👌👌👌 thank you again for this blog... 🙏
ReplyDeleteThank you so much
DeleteThe great knowledge and presentation of our historical valuable places in our state. Thanks sir 👌👌👌🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद साहू जी 🙏
Deleteएक विकासशील गति के अभाव के रहते भी अमूल्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को समेटे हुए रायसेन जिले के महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त प्राप्त कराने हेतु सादर धन्यवाद श्रीमान जी🙏🏻
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