Heliodorus Pillar Vidisha : हेलियोडोरस स्तंभ विदिशा :
यवन राजदूत ने भागवत धर्म अपनाकर बनवाया गरुड़ध्वज स्तंभ
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Heliodorus Pillar |
इस ब्लॉग में बात होगी आज से लगभग दो हजार वर्ष पहले की अर्थात 150 BC की जब देश में शुंग राजवंश का शासन था। शुंग राजवंश प्राचीन भारत का ब्राम्हण राजवंश था जिसने मौर्य वंश के बाद उत्तर भारत में 185 BC से 73 BC तक शासन किया था। तब मध्यदेश में आज का विदिशा प्राचीन बेस नगर हुआ करता था जो कि बेस नदी के किनारे बसा हुआ था। इससे यह बात तो स्पष्ट है कि विदिशा में जो बसाहट अर्थात नगरीय जीवन है वह लगभग 2000 साल पहले से आज भी निरंतर बनी हुई है। आज के समय में बहुत ही कम शहर ऐसे बचे हुए हैं जो लगातार 2000 साल बाद भी बसे हुए हैं।
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Heliodourus Pillar |
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Heliodorus Pillar |
खैर बात करते हैं आज के ब्लॉग के विषय Heliodouras Pillar हेलिओडोरस स्तम्भ की । हेलिओडोरस स्तंभ मध्य प्रदेश राज्य के विदिशा जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर पत्थर से बना हुआ एक प्राचीन स्तंभ है, जिसका निर्माण 150 ईसा पूर्व भारतीय यूनानी राजा Antialcidas जो कि तक्षशिला में शासन करता था उसके एक राजदूत हेलिओडोरस ने जो शुंग राजा भागभद्र के दरबार उसके 14 वे वर्ष में में राजदूत बनकर विदिशा आया था ने करवाया था। heliodouras डियोन का पुत्र था और तक्षशिला का निवासी था। यह स्थान सांची के स्तूप से लगभग 5 मील की दूरी पर है। यह स्तंभ एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया है और भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम का साक्षी है।
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Heliodorus pillar, 1913-15 excavation. |
Based on Helliodorus pillar evidence it has been suggested that Heliodorus is one of the earliest Westerners on record to convert to Vaishnavism whose evidence has survived. The pillar is also one of the earliest surviving records of a foreign convert into Vaishnavism The pillar also glorifies the Indian ruler as "Bhagabhadra the savior". The pillar is a stambha which symbolizes joining earth, space and heaven, and is thought to connote the "cosmic axis" and express the cosmic totality of the Deity
heliodorus Inscriptions :
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Heliodorus inscription |
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heliodorus inscription |
इस स्तंभ से प्राप्त अभिलेख इस प्रकार है :-
- देव देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
- कारिते इष्य हेलियो दरेण भाग
- वतेन दियस पुत्रेण नखसिला केन
- योन दूतेन आगतेन महाराज स
- अन्तलिकितस उपता सकारु रजो
- कासी पु (त्र)(भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
- वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
- (अर्थ : देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तंभ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।)
The text of the inscriptions is in the Brahmi script of the Sunga period, the language is Central-western epigraphic Prakrit, with a few Sanskritized spellings. The first inscription describes the private religious dedication of Heliodorus (Translations: Richard Salomon):
Line 1. This Garuda-standard of Vāsudeva, the god of gods
Line 2. was constructed here by Heliodora (Heliodoros), the Bhagavata,
Line 3. son of Dion, a man of Takhkhasila (Taxila),
Line 4. the Greek ambassador who came from the Great King
Line 5. Amtalikita (Antialkidas) to King
Line 6. Kasiputra Bhagabhadra, the Savior,
Line 7. prospering in (his) fourteenth regnal year.
The second inscription on the pillar, in the same script, recites a verse from the Hindu epic Mahabharata:
Line 1. (These?) three steps to immortality, when correctly followed,
Line 2. lead to heaven: control, generosity, and attention
Three immortal precepts (footsteps)... when practiced lead to heaven: self-restraint, charity, consciousness
𑀤𑁂𑀯𑀤𑁂𑀯𑀲 𑀯𑀸(𑀲𑀼𑀤𑁂)𑀯𑀲 𑀕𑀭𑀼𑀟𑀥𑁆𑀯𑀚𑁄 𑀅𑀬𑀁
Devadevasa Vā[sude]vasa Garuḍadhvaje ayaṃ
𑀓𑀭𑀺𑀢𑁄 𑀇(𑀅) 𑀳𑁂𑀮𑀺𑀉𑁄𑀤𑁄𑀭𑁂𑀡 𑀪𑀸𑀕
karito i[a] Heliodoreṇa bhāga-
𑀯𑀢𑁂𑀦 𑀤𑀺𑀬𑀲 𑀧𑀼𑀢𑁆𑀭𑁂𑀡 𑀢𑀔𑁆𑀔𑀲𑀺𑀮𑀸𑀓𑁂𑀦
vatena Diyasa putreṇa Takhkhasilākena
𑀬𑁄𑀦𑀤𑀢𑁂𑀦 𑀅𑀕𑀢𑁂𑀦 𑀫𑀳𑀸𑀭𑀸𑀚𑀲
Yonadatena agatena mahārājasa
𑀅𑀁𑀢𑀮𑀺𑀓𑀺𑀢𑀲 𑀉𑀧𑀁𑀢𑀸 𑀲𑀁𑀓𑀸𑀲𑀁𑀭𑀜𑁄
Aṃtalikitasa upa[ṃ]tā samkāsam-raño
𑀓𑀸𑀲𑀻𑀧𑀼𑀢𑁆𑀭𑀲 𑀪𑀸𑀕𑀪𑀤𑁆𑀭𑀲 𑀢𑁆𑀭𑀸𑀢𑀸𑀭𑀲
Kāsīput[r]asa [Bh]āgabhadrasa trātārasa
𑀯𑀲𑁂𑀦 (𑀘𑀢𑀼)𑀤𑀲𑁂𑀁𑀦 𑀭𑀸𑀚𑁂𑀦 𑀯𑀥𑀫𑀸𑀦𑀲
vasena [chatu]daseṃna rājena vadhamānasa
𑀢𑁆𑀭𑀺𑀦𑀺 𑀅𑀫𑀼𑀢𑁋𑀧𑀸𑀤𑀸𑀦𑀺 (𑀇𑀫𑁂) (𑀲𑀼)𑀅𑀦𑀼𑀣𑀺𑀢𑀸𑀦𑀺
Trini amuta𑁋pādāni (i me) (su)anuthitāni
𑀦𑁂𑀬𑀁𑀢𑀺 𑀲𑁆𑀯(𑀕𑀁) 𑀤𑀫 𑀘𑀸𑀕 𑀅𑀧𑁆𑀭𑀫𑀸𑀤
neyamti sva(gam) dama cāga apramāda
लगभग हर प्रतियोगी परीक्षा में इस विषय से संबंधित सवाल पूछा जाता है। कौन बनेगा करोड़पति में भी यह प्रश्न पूछा जा चुका है। इस स्तंभ को विदिशा की लोक भाषा में खाम बाबा के रूप में जाना जाता है। विदिशा की ढीमर लोग इस स्तंभ को खाम बाबा के रूप में पूजा करते हैं। यह स्तंभ देश के सबसे प्राचीनतम स्मारकों में शामिल है। यह स्तंभ भूरे रंग के सेंड स्टोन पत्थर से बना हुआ है। सबसे ऊपर गरुड़ की मूर्ति सुशोभित है। इस स्तम्भ की खोज लगभग 1877 में अलेक्सेंडर कनिंगम द्वारा विदिशा के नजदीक बेस नगर में की गयी थी। यह दोनों तरफ से बेस नदी और हलाली नदी के मध्य बसा हुआ है।
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Deity of Vasudeva on coin 190 -180 BCE |
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Initial reconstitution of the Heliodorus pillar by Cunningham in 1874-1875 |
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Structure and decorative elements of the Heliodorus pillar. The pillar originally supported a statue of Garuda, now lost, or possibly located in the Gujari Mahal Museum in Gwalior |
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Images of the deities were probably present in shrines adjoining the pillars, in a style rather similar with their depiction on the coinage of Agathocles of Bactria (190-180 BCE). Here Saṃkarṣaṇa and Vāsudeva are shown with their attributes |
उपलब्ध इतिहास के अनुसार हेलिओडोरस ही वह पहला विदेशी व्यक्ति था जिसने अपना धर्म बदल कर भागवत धर्म अपनाया था। इस स्तंभ पर पाली भाषा में ब्राह्मी लिपि का उल्लेख मिलता है। पुष्यमित्र शुंग की नवीं पीढ़ी के शुंग शासक महाराजा भागभद्र के दरबार में तक्षशिला के यूनानी राजा Antialcidas की तरफ से दूसरी सदी ईसा पूर्व heliodouras नामक राजदूत को भेजा गया था। पुष्यमित्र शुंग ने ही मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहदत्त की हत्या कर अपना शासन स्थापित किया था। उस वक्त पुष्यमित्र ने विदिशा को राजधानी का दर्जा दिया था। Heliodouras राजदूत उस वक्त के भागवत धर्म की व्यापकता से इतना प्रभावित हुआ कि स्वयं उसने भी भागवत धर्म को स्वीकार कर लिया और उसके प्रचार-प्रसार में शामिल हो गया। इसी कड़ी में उसने विदिशा के नजदीक बेसनगर में एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया और उसके सामने एक गरुड़ ध्वज स्तंभ बनवाया। यह स्तंभ की ऊंचाई 20 फीट 7 इंच है और आज भी उसी शान और शौकत के साथ खड़ा हुआ है। यह सारी सूचना इस स्तंभ पर अंकित है। इस पर दर्ज शिलालेख में लिखा गया है कि इसे भगवानों के भगवान यानी वासुदेव के सम्मान में हेलिओडोरस द्वारा स्थापित किया गया था । यह स्तंभ लेख इसीलिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में यूनानी लोगों ने भागवत धर्म को स्वीकार कर लिया था और इससे वैष्णव धर्म के विकास पर भी प्रकाश पड़ता है।
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Heliodorus Pillar Vidisha campus |
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ancient shivlinga and sati stone |
हेलिओडोरस द्वारा निर्मित यह गरुड़ ध्वज या गरुड़ स्तंभ कला का एक आदर्श नमूना है और संभवत इसे सम्राट अशोक के स्तंभों के आदर्श पर ही बनाया गया था। इस स्तंभ की स्वयं की कुछ विशेषताएं भी हैं। इसका सबसे निचला भाग 8 कोनों का है ,मध्य भाग 16 कोनों का और ऊपरी भाग 32 कोनों का है । यह विशेषता सम्राट अशोक के मौर्यकालीन स्तंभों में नहीं दिखाई देती है। इससे यह पता चलता है कि विदिशा के कलाकार मूर्तिकला में संभवतः अधिक निपुण थे और उनकी कला उच्च कोटि की थी। ।
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Excavation of the huge Temple of Vāsudeva next to the Heliodorus pillar. The Temple measured 30x30 meters, and the walls were 2.4 meters thick. Pottery remains assigns the site to the 2nd century BCE.Further excavations also revealed the outline of a smaller elliptic temple structure, which was probably destroyed by the end of the 3rd century BCE.The platform and the base of the Heliodorus pillar are visible in the immediate background. |
वर्तमान में वह विष्णु मंदिर तो अब नहीं है परंतु गरुड़ध्वज आज भी उसी स्थान पर स्थित है और हेलिओडोरस की धर्म भक्ति की पताका को पूरे संसार में लहरा रहा है। पुरातात्विक प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन काल में यहां एक वृहद विष्णु मंदिर था । मंदिर की नींव लकड़ी की बनी थी । इस स्थान पर बना यह मंदिर वासुदेव पर संसार में प्राचीनतम मंदिर माना जाता है। पुरातत्वविदों के अनुसार यहां विष्णु मंदिर और 8 स्तंभों का निर्माण करवाया गया था इन स्तंभों में से 7 एक ही कतार में मंदिर के पूर्वी भाग में बने हुए थे लेकिन अब केवल आठवां स्तंभ ही शेष है जिसे हेलिओडोरस स्तंभ के रूप में देखते हैं। पुरात्तव अनुसार यहाँ 4 से 3 BC तक एक मंदिर के प्रमाण मिले है। जो संभवत दूसरी सदी ईसा पूर्व में बाढ़ के कारण नष्ट हो गया है। तब उसके ऊपर वासुदेव मंदिर का निर्माण किया गया था। जिसके पिलर लकड़ी के बने थे। सम्भतः यह मंदिर भी बाढ़ के कारन नष्ट हुआ है। फिर इसके ऊपर मिटटी के परत जम गयी जिसके ऊपर तीसरी बार वासुदेव मंदिर का निर्माण किया गया था। इसे स्तम्भ पत्थर के बने थे एवं मंदिर पूर्व मुखी था. इसके भी सात स्तम्भ नष्ट हो गए एवं आठवां स्तम्भ गरुड़ स्तम्भ था।
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बेस नदी विदिशा |
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बेस नदी विदिशा |
मंदिर के पास में प्राचीन बेस नदी अभी भी बह रही है हालांकि अब यह नदी कम एक नाले के रूप में ज्यादा नजर आती है। इस नदी को भी आज अपने उद्धार का इंतजार है। स्तंभ परिसर में चारों तरफ पेड़ बने हुए हैं जिनके ठंडी छांव में बैठकर आप इत्मीनान से यहां के अवलोकन कर सकते हैं। एक पेड़ के नीचे कुछ प्राचीन मूर्तियां, शिवलिंग और एक सती स्तंभ रखा हुआ है।
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हेलिओडोरस परिसर में पुराने मंदिर के अवशेष |
स्थान राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों में शामिल है। विदेशी पर्यटकों के बीच यह स्थान बहुत प्रसिद्ध है और आकर्षण का केंद्र बिंदु है। वापसी के समय सूर्यास्त का दृश्य आपको यकीनन आकर्षित करेगा और आपको इसे कैमरे में कैद करने के लिए विवश कर देगा।
हेलिओडोरस स्तंभ तक पहुंचे कैसे :
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हेलिओडोरस दिशा सूचक |
विदिशा राजधानी भोपाल के लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और सड़क और रेल मार्ग से देश के हर प्रमुख शहर से जुड़ा हुआ है नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है टैक्सी ऑटो भी आसानी से उपलब्ध है। भोपाल कानपुर नेशनल हाईवे 146 सांची विदिशा सागर से गुजरता है स्टेट हाईवे 19 विदिशा से अशोकनगर जाता है।
Photo Gallery of Heliodorus Pillar Vidisha :
19 Comments
great sir
ReplyDeleteShandar
ReplyDeleteThank you so much
DeleteI am not at this level to say about you with my little knowledge,,,but sir you are the one who lead and cheers on his haritage with new energy🙏
ReplyDeleteThank you so much 👍
Deleteबहुत ही उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर जी🙏🙏
Thank you so much manoj
Deleteयह जानकारी आज मिली मुझे इसके विषय में पहले से कुछ पता भी नहीं था बहुत रोचक जानकारी ढूंढते हैं श्रीमान जी आप
ReplyDeleteThanks sudarshan👍
DeleteBahut sundar sir ji
ReplyDeleteThanks
Deletegreat information with beautiful pics of heritage site.
ReplyDeleteThank you so much 👍
Deleteलेख को पड़कर लगता है इसको तैयार करने में आपने बहुत मेहनत की है। इतनी गहन एवं विस्तृत जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteThank you so much respected sir 🙏
DeleteIt is enlightening , thanks to you ,to learn of these unknown sites of ancient history n links with foreign powers . Look fwd to more such .
ReplyDeleteThank you so much for your valuable comment 🙏
DeleteYou are great at conveying things literally. I really enjoyed reading and learning something new.. Keep it up great work 👍👍 - Shikha
ReplyDeleteThank you so much shikha 👍
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