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मुरैल खुर्द : गुमनाम बौद्ध स्तूपों का समूह Murelkhurd: lost place of Great Stupas of ancient India

मुरैल खुर्द (भोजपुर) एक गुमनाम बौद्ध स्तूपों का समूह : 

murelkhurd stupa
murelkhurd great stupa 


मुरेलखुर्द : सांची और उसके आसपास का क्षेत्र ईसा पूर्व शताब्दियों से ही बौद्ध स्मारकों के लिए मशहूर है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मौर्य शासन के समय से यहाँ बौद्ध स्मारकों का निर्माण शुरू हुआ था जो लगभग 10 वी सदी के आसपास तक होता रहा।  ईसा पूर्व से लेकर बाद की अन्य कई शताब्दियों तक के बौद्ध स्मारक यहां मौजूद है। पर दुख की बात यह है कि सांची के अलावा अन्य बौद्ध स्मारकों के बारे में लगभग जानकारी बहुत कम है। सांची से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है एक प्रमुख बुद्ध स्तूपों का समूह है जो कि साँची के ही समकालीन हैं। इसे भोजपुर अथवा मुरेलखुर्द  स्तूप समूह के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि पिछले ब्लॉग में बताया था कि सांची के आसपास की परिधि में 4 बौद्ध स्मारकों का समूह है सुनारी ,मुरैल खुर्द,सतधारा और अंधेर । 

मुरेलखुर्द स्तूप समूह 

मुरेलखुर्द स्तूप 


        आज के ब्लॉग में  मुरैल खुर्द बौद्ध स्तूप के बारे में चर्चा करेंगे। पिछले लेखों में साँची , सतधारा पर ब्लॉग लिख चुका  हूँ। दोनों ब्लॉग की लिंक नीचे दी गयी है जिन्हे आप पुनः पढ़ सकते है।  अगले ब्लॉग में सुनारी और अंधेर स्तूप समूह को कवर करूँगा जिससे यह बौद्ध सर्किट पूरा हो जायगा।  



Sanchi and surrounding stupas.



जहां तक मुरलखुर्द स्तूपों की बात है है तो इनके बारे में बहुत कम लोगो को जानकारी है।  विदिशा के बाहर हाईवे पर जरूर आपको दूरी संकेतक दिख जायेंगे जिससे आपकी जिज्ञासा बढ़ सकती है जैसे की मुझे भी हुए थी।  भोजपुर स्तूप जिन्हे मुरैल खुर्द स्तूप समूह से भी जाना जाता है ग्रुप में 40 के लगभग स्तूप है जो मुरैल खुर्द के नजदीक एक पहाड़ी पर स्थित है। इन सभी स्तूपो में बौद्ध धार्मिक गुरुओं और शिष्यों के अस्थि अवशेष आदि रखे हुए हैं। विदिशा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर मुरैल खुर्द की पहाड़ी पर 40 से अधिक बौद्ध स्तूपो की श्रृंखला विद्यमान है। यहां बौद्ध विहार भी है। बुद्ध की प्रतिमाएं भी थी जो अब म्यूजियम में स्थानांतरित कर दी गई है। 

murelkhurd stupa
मुरेलखुर्द स्तूप 

murelkhurd
मुरेलखुर्द स्तूप 


        विदिशा से इतना नजदीक होते हुए भी यहां के स्थानीय लोग भी इन स्मारकों के बारे में जानकारी नहीं रखते और जो लोग कोशिश के बाद यहां पहुंच पाते हैं वह केवल नीचे के बौद्ध स्तूप देखकर ही वापस आ जाते हैं। पुरातत्व द्वारा यहां कोई ऐसा बोर्ड या जानकारी नहीं लगाई गई है जिससे यहां के बारे में अधिक जानकारी पता लग सके और और लगभग यह साइट उपेक्षित स्थिति में है। विदिशा से 12 किलोमीटर दूर धनोरा हवेली से आगे मुरैल खुर्द की पहाड़ी है और यह पूरा इलाका चट्टानी है। इन्हीं पहाड़ियों पर स्थित है बौद्ध स्तूपो की एक विशाल श्रंखला जिसे आज हम मुरैलखुर्द या भोजपुर स्तूप के नाम से जानते हैं। 

        यहां के स्मारक तीन समूह में बटे हुए हैं। शुरुआत में छोटे-छोटे स्तूपो की श्रंखला आती है और उसके बाद पहाड़ के ऊपरी हिस्से जाने पर एक मॉनेस्ट्री और एक विशाल बौद्ध स्तूप स्थित है। यहां की पहाड़ी पर स्थित बौद्ध विहार काफी विशाल है और व्यवस्थित और आकार में विशाल था जहां पर बुद्ध की मूर्ति भी हुआ करती थी जिसे आप सांची म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया गया है। इसे देखकर माना जा सकता है कि यह भी सांची और सतधारा के समान ही विशाल और प्रमुख बौद्ध केंद्र रहा होगा। मौर्य काल में बने हुए यह स्तूप लगभग 2300 साल पुराने हैं। 

मुरेलखुर्द स्तूप समूह 

murelkhurd stupa
मुरेलखुर्द 

bhojpur stupa
मुरेलखुर्द स्मारकों के अवशेष 


Stupas, reliquaries and inscriptions.


Alexander Cunningham Publication date 1854 - The Bhilsa Topes, Or, Buddhist Monuments of Central India: Comprising a Brief Historical Sketch .

        पहाड़ी के पश्चिमी छोर पर एक छोटे मंदिर के खंडहर मिलते हैं जिससे कुछ खंभे अभी भी यहां खड़े हैं। मुरैल खुर्द के स्तूप की खोज सन 1851 में मेजर कनिंघम द्वारा की गई थी। 

Stupas, reliquaries and inscriptions.

Alexander Cunningham Publication date 1854 - The Bhilsa Topes, Or, Buddhist Monuments of Central India: Comprising a Brief Historical Sketch 


यहां के स्तूपो में अस्थिया थी, स्तूप नंबर 2 से एक मूल्यवान रॉक का क्रिस्टल धातु मंजूषा, स्तूप नंबर 4 से दो धातु मंजूषा और नौ से एक धातु मंजूषा, शिलालेख को ब्रिटिश संग्रहालय ले जाया गया है।अवशेषों में से एक रॉक क्रिस्टल मिला था जो कि एक छोटे बौद्ध स्तूप जैसा था। यह स्तूप ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के हैं और इनका निर्माण बाद में 10 वीं शताब्दी तक चलता रहा है। कनिंघम ने अपनी खोज में लिखा है कि इस स्तूप 2 में एक अवशेष कमरा मिला जिसमें गोल लाल मिट्टी का बर्तन था जो सफेद ढक्कन से लेपित किया गया था। इसके अंदर अवशेष  सबसे सुंदर और महंगे थे। यह रॉक क्रिस्टल अवशेष एक छोटे स्तूप के रूप में छह भागों में हैं। कनिंगम ने यहाँ के सभी स्तूपों को खोल के देखा और प्राप्त अवशेषो को ब्रिटिश मयूजियम ले जाया गया।  

The reliquary of stupa n°2, in rock crystal (H: 11 cm, W: 8 cm, Victoria and Albert Museum).

Plan Bhojpur Stupa 2 rock crystal reliquary. Rock crystal (H: 11 cm, L: 8 cm, Victoria and Albert Museum). "Rock crystal reliquary in six parts in the form of a small stupa" cut on a lathe. Notice at the Victoria and Albert Museum

murelkhurd stupa
मुरेलखुर्द  स्तूप समूह 

murelkhurd stupa
मुरेलखुर्द बौद्ध विहार 

यहाँ का बौद्ध विहार आज भी अच्छी अवस्था में है।  ऊपर जाने वाली सीढिया भी अच्छी स्तिथि में है।  यह एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है और दूर तक यहाँ से नजर रखी जा सकती है।  

मुरैल खुर्द तक पहुंचे कैसे how to reach murelkhurd : 




मुरैल खुर्द विदिशा से 12 किलोमीटर की दूरी पर और सांची से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। परंतु इतना नजदीक होते हुए भी यहां तक पहुंचना बहुत दुश्वार और कठिन है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको निजी वाहन एवं स्थानीय व्यक्ति की मदद की जरूरत पड़ेगी तभी आप आसानी से यहां तक पहुंच पाएंगे। हालांकि प्रशासन द्वारा जगह-जगह संकेत सूचक लगाए गए हैं परंतु रास्ता कठिन है।


चित्र दीर्घा मुरेलखुर्द Photo Gallery of Murelkhurd :






























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18 Comments

  1. अति महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई सर जी

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    1. Suveer singh sikarwarMay 29, 2023 at 12:48 PM

      Thank you so much

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  2. बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी मिली है सर

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  3. 👍 the way of explanation is very nice ... 🙏

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  4. Unique & very useful blog sir🙏🙏👌👌

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  5. बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई सर जी 🙏🙏🙏🙏🙏

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  6. Superb sir ji, clean and neat explanation

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  7. सारगर्भित जानकारियों के साथ सचित्र सुंदर आलेख। पूर्ण उम्मीद है कि पुरातत्व विभाग भारतीय इतिहास की इन अमूल्य धरोहरों को उचित रूप में संरक्षित करेगा और स्थानीय स्तर पर इन महत्वपूर्ण जानकारियों को उपलब्ध कराएगा ताकि हमें अपने गौरवशाली भारतीय इतिहास और परंपराओं की सही जानकारी मिल सके। सुंदर आलेख हेतु धन्यवाद

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    1. Suveer singh sikarwarMay 29, 2023 at 12:44 PM

      बहुत बहुत धन्यवाद सोलंकी जी

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  8. मुरेलखुर्द जैसे कम ख्यात स्थल जिनकी सामान्य पुस्तकों में जानकारी कम ही उपलब्ध है तथा जो मुख्य धारा से दूर है,पर एक शानदार आलेख जो सांची एवं उसके आस पास के क्षेत्र में तत्कालीन बौद्ध धर्म, कला व संस्कृति,तथा महत्व को प्रदर्शित करता है के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी हेतु साधुवाद

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