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Dashavatara Temple Deogarh देवगढ़ का दशावतारमन्दिर

देवगढ़ का दशावतार मंदिर  ( Dashavatra Temple Deogarh ): 


deogarh dashavatra temple
Deogarh Dashavatra Temple 


ऐसा कम ही होता है कि बचपन में जो हमने किताबों में पढ़ा होता है वह हमें सजीव देखने और अनुभव करने का मौका मिल जाये तो एक असीम आनंद की अनुभूति होती है। मेरा पसंदीदा विषय है भारत का प्रारंभिक इतिहास और किताबो में हमने कई बार स्वर्ण युग गुप्तकाल के बारे में पढ़ा है। इसी गुप्तकाल की देन है भारत के मंदिर। जी हाँ यह सच है कि भारत में मंदिरो के निर्माण का श्रेय गुप्तकाल को ही जाता है।  भारत के प्रारंभिक मंदिरो की जब भी चर्चा होती है तो सबसे पहले साँची का मंदिर 17 , तिगवां का विष्णु मंदिर, नचना कुठार का पार्वती मंदिर , भूमरा का शिव मंदिर, भीतरगावं का मंदिर और मंदिरो में स्थापत्या कला का श्रेष्ठ मंदिर देवगढ़ का दशावतार मंदिर।  

गुप्तकालीन मूर्तिकला देवगढ़ मंदिर 


        इन सभी मंदिरो में साँची का मंदिर, तिगवां का मंदिर, नचना का मंदिर और भूमरा का शिव मंदिर मैं  पहले ही देख चुका था और इन सभी पर ब्लॉग भी लिख चूका हूँ जिनकी लिंक भी सलंगन है।  मुख्य रूप से दो मंदिर देखना शेष थे जो उत्तर प्रदेश में है एक भितरगावं का मंदिर और दूसरा देवगढ़ का दशावतार मंदिर।  बहुत समय से देवगढ़ का मंदिर जाने की योजना बना रहा था क्योंकि यह मेरे गृह नगर ग्वालियर के नजदीक है। कुछ समय पहले परिवार के साथ सड़क मार्ग से झाँसी तक जाना था और वहां से वापस आना था तो जैसे ही वापसी में ललितपुर तक आना हुआ तो देवगढ़ की जिज्ञासा पुनः जागृत  हो गयी और गूगल मैप पर देखा तो करीब 40 km दूरी दिखा रहा था।  समय भी काफी शेष था तो गाड़ी मुड़ गयी दशावतार मंदिर यानि देवगढ़।  हालाँकि गूगल मैप ललितपुर के गावों के बीच से होते हुए समय कुछ अधिक लिया पर देवगढ़ पहुंचा ही दिया।  यहाँ कई अन्य ऐतिहासिक स्थान भी है।  पर आज का ब्लॉग मुख्य रूप से देवगढ़ के दशावतार मंदिर पर ही आधारित है।  

        गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वात्तम उदाहरण 'देवगढ़ का दशावतार मंदिर' है। इस मंदिर में गुप्त स्थापत्य कला अपने पूर्ण विकसित रूप में दृष्टिगोचर होती है। यह मंदिर सुंदर मूर्तियों से जड़ित है, इनमें झांकती हुई आकृतियां, उड़ते हुए पक्षी व हंस, पवित्र वृक्ष, स्वास्तिक फूल पत्तियों की डिज़ाइन, प्रेमी युगल एवं बौनों की मूर्तियां नि:संदेह मन को लुभाते हैं। इस मंदिर की विशेषता के रूप में इसमें लगे 12 मीटर ऊँचें शिखर को शायद ही नज़रअंदाज़किया जा सके। सम्भवतः मंदिर निर्माण में शिखर का यह पहला प्रयोग था। अन्य मंदिरों के मण्डप की तुलना में दशावतार के इस मंदिर में चार मण्डपों का प्रयोग हुआ है। हालाँकि अब शिखर शेष नहीं है ,केवल उसके निशान दिखते है। 



        मित्रों आज के ब्लॉग  में हम गुप्त काल के प्रसिद्ध एतिहासिक मंदिर दशावतार के बारे में चर्चा करेंगे। उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले से 33 किलोमीटर की दूरी पर बेतवा नदी के किनारे विंध्याचल पर्वत की दक्षिण पश्चिम श्रंखला पर देवगढ़ एक ऐतिहासिक नगरी है। 1974 तक यह झांसी जिले के अंतर्गत आता था। ,उपलब्ध ऐतिहासिक विवरण अनुसार  गुप्तकाल, गुर्जर प्रतिहार, गडरिया, चंदेल, गोंड , मुस्लिम शासक और बाद में ब्रिटिश के समय में भी यह ऐतिहासिक स्थल रहा है। आठवीं सदी से 17 वी सदी के मध्य  यह स्थान जैन धर्म का प्रमुख केंद्र था। देवगढ़ पुरातत्व वेदों के लिए एक प्रमुख केंद्र है और पुरातत्व संपदा से संपन्न है। यहां कई ऐतिहासिक स्मारक आज भी अच्छी अवस्था में विद्यमान है और कई ऐतिहासिक अभिलेख भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं। जैन मंदिरों के ध्वंस अवशेष यहां बहुत मात्रा में मिलते हैं। यह एक प्राचीन स्थल है। हिंदू, जैन ,बौद्ध स्मारकों की श्रंखला यहां मौजूद है और  कई भाषाओं और लिपियों में शिलालेख भी यहाँ पाए जाते हैं जिससे पता चलता है यह एक प्रमुख मानव बस्ती रही है और व्यापार मार्ग का एक प्रमुख केंद्र रहा है।  

deogarh dashavatra temple
deogarh dashavatra temple 

 सबसे प्रमुख देवगढ़ का दशावतार मंदिर है जो गुप्तकालीन कला का एक बेजोड़ नमूना है।

दशावतार मंदिर : Dashavatra temple 

        गुप्तकालीन यह मंदिर पंचायतन शैली में बनाया गया है और भगवान विष्णु को समर्पित है।  यह गुप्त काल में बना मंदिर पंचायतन शैली का सबसे उत्कृष्ट नमूना है। पिछले ब्लॉग में हम गुप्तकालीन के प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरो का उल्लेख कर चुके हैं परंतु उन सभी में सबसे श्रेष्ठ  मंदिर देवगढ़ के दशावतार मंदिर को माना जाता है। यह मंदिर बेतवा नदी घाटी में स्थित है। इसका समय लगभग पांचवी से छठवीं शताब्दी के आसपास का काल माना जाता है इसमें एक सरल एक वर्ग योजना है और यह गुप्तकालीन मंदिर गुप्त शैली की सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला को प्रदर्शित करता है।

देवगढ़ दशावतार मंदिर प्रवेश द्वार 

        पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम में सन 1875 में यहां का दौरा किया था और इसे सामान्य स्थान पर बहुत शानदार कहा था कनिंघम में लिखा है कि देवगढ़ में अपने दौरे के दौरान जो शिलालेख मिले थे वह गुप्त लिपि में थे और कुछ अन्य उनको समझ में नहीं आए थे। कनिंघम में यहां पर जैन मंदिर और जैन मंदिरों की विशाल श्रंखला और तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियों के बारे में सूचना दी है।  देवगढ़ मंदिर पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी जिसे उन्होंने गुप्तकालीन मंदिर कहा और उन्होंने स्थापत्य शैली और विषय के आधार पर बताए कि यह मंदिर 7 वी सदी से पहले बनाया गया होगा जिसका अनुमान छठवीं शताब्दी के मध्य था। कनिंघम की 1875 रिपोर्ट से पहले सन 1871 में चार्ल्स स्ट्रेहान ने यहां का दौरा किया था। 

देवगढ़ दशावतर मंदिर 


        सन 1899 में पी सी मुखर्जी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से यहां पर सर्वेक्षण किया और विष्णु की प्रतिमाओं को बहुत ध्यान पूर्वक उल्लेख किया। उन्होंने स्वीकार किया कि विष्णु के 10 अवतार मंदिर पर उकेरे गये  थे,लेकिन अब यह गायब हैं। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इसे दशावतार मंदिर कहां और स्थानीय लोग सागर मठ के नाम से कहते थे। बीसवीं सदी की शुरुआत में दयाराम साहनी द्वारा यहां खुदाई की गई और अधिक हिंदू मंदिर, शिलालेख, जैन मंदिर, बौद्ध स्मारकों के प्रमाण मिले। 1918 में दयाराम साहनी को नींव के पास दफनाए गए मंदिर के पैनल भी मिले और किसी ने पास की दीवार बनाने के लिए इसे इस्तेमाल किया था इस पैनल में हिंदू महाकाव्य रामायण के दृश्यों को दर्शाया गया है। बीसवीं सदी की शुरुआत में लापता 10 अवतारों के बारे में नई बहस को जन्म दिया गया कि इससे मंदिर को दशावतार मंदिर कहां जाना चाहिए या नहीं क्योंकि यहां दशावतार के प्रमाण नहीं मिल रहे थे। वत्स के प्रमाण बताते हैं कि 19वीं सदी के अंत में यहां बड़ी संख्या में इसके प्रमाण मिले है। इतिहासकारों के अनुसार उत्तर भारत का सबसे पहला मंदिर है जो पंचायतन शैली में बनाया गया है बाद में कनिंघम द्वारा इसका नाम बदलकर दशावतार मंदिर कर दिया गया क्योंकि मंदिर में विष्णु के 10 अवतार हुए दर्शाया गया है। 

देवगढ़ दशावतार मंदिर 


दशावतार मंदिर का समय : 

        इस मंदिर का निर्माण आम सहमति से पांचवी शताब्दी के अंत और छठवीं शताब्दी के प्रारंभ में माना जाता है। 

दशावतार मंदिर का स्थापत्य : 

        दशावतार मंदिर एक ऊंचे चबूतरे (जगती) पर बना हुआ है और एक बरामदे के साथ स्थापित है। चबूतरे पर चारों तरफ सीढ़ियां बनाई गई है। मंदिर पश्चिमी मुखी है।  गर्भ गृह  18.5 फ़ीट का वर्गकार है। गर्भगृह खाली है और कोई भी प्रतिमा नहीं है बस एक आधार बना है और उसमे एक बड़ा सा छेद है जो संभवतः मूर्ति का स्थान होगा जैसा की फोटो में देख सकते है। 

devgarh dashavtra mandir
देवगढ़ दशावतार मंदिर गर्भगृह 


मंदिर के प्रवेश द्वारा पर गंगा और यमुना का चित्रण किया गया है।  प्रवेश द्वार बहुत ही नक्काशीदार है और कई प्रतिमाओं का अंकन किया गया है।   द्वार पर सबसे ऊपरचार भुजाधारी भगवान विष्णु को शेषनाग के ऊपर बैठे हुए दिखाया गया है।  प्रवेश द्वार बहुत विशाल है और गुप्तकाल का वैभव को दर्शाता है।  

देवगढ़ दशावतार मंदिर प्रवेश द्वार 

देवगढ़ मंदिर प्रवेश द्वार पैनल 


गर्भ गृह पर विष्णु और लक्ष्मी को दर्शाया गया है। यह मंदिर उत्तर भारत में सबसे पुराने मौजूद लीथिक चित्रण में से एक है। गर्भगृह के प्रत्येक ओर जो बाहरी दीवारों पर आले बने हुए और प्रत्येक आले में विष्णु पुराण की कथाओं की एक पूरी सीरीज चित्रण है। 

Deogarh dashavatra temple
Deogarh Dashavatra Temple 


उत्तर दिशा की दीवाल में गजेंद्र मोक्ष है जो 3.25 * 5 फीट है आकार का है। यहां चित्रण में प्रतीक हाथी एक तालाब के अंदर अपने पैर और अपनी सूंड में कमल के फूल के साथ मदद के लिए प्रार्थना कर रहा है और उसको बचाने के लिए भगवान विष्णु को गरुड़ पर उड़ते हुए दिखाया गया है।     


deogarh dashavatra temple
देवगढ़ दशावतार मंदिर 

पूर्व की ओर के दीवाल में नर नारायण हैं जो ललित आसन में बैठे हैं। दोनों हाथ में एक माला पकड़े हुए हैं और बंद आंखों और शांत वातावरण में दिखाया गया है। अप्सराओ को हाथों से ऊपर की ओर उड़ते हुए दिखाया गया है जैसे वह फूल बरसा रहे हैं। नर और नारायण के नीचे शेर और हिरण शांत अवस्था में बैठे हुए हैं। पैनल में 4 सिर वाले ब्रह्मा भी हैं, जो कमल पर और कमल आसन में बैठे हैं । 

dashavatra temple deogarh
deogarh dashavatra temple 


दक्षिण की ओर आले में शेषशायी विष्णु कथा दर्शाई गई है। जिसमे भगवान विष्णु सात फन वाले भगवान शेषनाग के ऊपर आराम कर रहे हैं। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी हुई हैं। ऊपर भगवान ब्रह्मा को दर्शाया गया है जिनके 2 हाथ हैं और साथ  में उनका प्रतिष्ठित प्रमंडल है।  ब्रह्मा के बगल में अन्य तरफ इंद्र वरुण और कार्तिकेय नंदी पर, शिव और पार्वती और एक माता के साथ एक व्यक्ति है। लेटे हुए भगवान विष्णु के नीचे पांच पुरुषों (पांडवो) और एक महिला (द्रोपदी) को दर्शाते हुए एक पैनल है जो महाभारत कथा को प्रदर्शित करता है। 

देवगढ़ दशावतार मंदिर पैनल 


कुछ मूर्तियां अभी भी मंदिर की दीवारों पर सुरक्षित है जबकि अन्य मूर्तियों को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय और अहमदाबाद के संग्रहालय में भेज दिया गया है। देवगढ़ में अन्य बहुत से स्थान कवर करना शेष रह गए है।  समय की कमी से दूसरे ब्लॉग में उन्हें शामिल करने का प्रयास करूँगा। 

देवगढ़ दशावतार मंदिर तक कैसे पहुंचे : नजदीकी रेलवे स्टेशन जाखलौन है जो हालांकि छोटा स्टेशन है।  बड़ा रेलवे स्टेशन ललितपुर है जो लगभग 35 km की दूरी पर है।  खजुराहो से लगभग 220 km सड़क मार्ग दूरी है, ग्वालियर से 250 किमी की दूरी पर स्तिथ है।  

PHOTO GALLERY  OF DASHAVATRA  TEMPLE : चित्र दीर्घा 





























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13 Comments

  1. Very knowledgeable blog

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  2. Well written along with beautiful pictures 🙏🙏

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  3. Writing skill is very nice ... every line tells story.....

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  4. ऐतिहासिक गुप्तकालीन मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थापत्य भूमिका रखने वाला मंदिर

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  5. Very knowledgeable blog

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